इस समय यदि पति ने अपनी स्त्री घर के बाहर निकाल दी हो, या उसका उस पर बहुत ही घातकी व्यवहार हो-यदि इन दोनों बातों में से एक भी साबित न हो तब भी विवाह-बन्धन खुल जाता है, ऐसा होजाने पर लोगों की पुकार है कि तलाक़ देने का काम इस ज़माने में बड़ा ही सीधा होगया है। सचमुच समाज ने स्त्रियों को पति की ग़ुलामी के अलावा और कोई आज़ादी नहीं दी, इसलिए यदि स्त्रियों के सौभाग्य से उन्हें ऐसा पति मिलजाय जो उन्हें कम से कम बोझा ढोने वाला जानवर न समझ कर, पालतू जानवर ही समझे, तब ही उन्हें थोड़ा बहुत सुख मिलना सम्भव है। फिर जिस पति पर उसके सम्पूर्ण जीवन के सुख-दुखों का आश्रय है और सदैव जिसको ग़ुलामी करनी है, उसकी जाँच करने का केवल एक ही अवसर मिलना क्या उसकी कमनसीबी नहीं है? इन सब बातों से यह अनुमान निकलता है कि उसका सम्पूर्ण सुख पति के अच्छे-बुरे निकलने ही पर है, फिर एक दूसरे की आज़माइश करके अच्छे-बुरे के पजोख लेने की आज्ञा उसे अवश्य होनी चाहिए। इस बात से मेरा मतलब यह नहीं है कि स्त्रियों को यह हक़ मिलना चाहिए, क्योंकि यह बात ही न्यारी है। इस विवेचना का विषय यह नहीं है कि एक पति के साथ वाले विवाह को रद करके दूसरे के साथ विवाह करने का हक़ स्त्री को होना चाहिए-यह मतलब नहीं है। मेरा कहना सिर्फ़ यह है कि समाज ने जिनके
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