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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१३७

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इसे स्वीकार करता हूँ कि पुरुषों का सामना करने से स्त्रियों का जो कुछ होना चाहिए वह अधिकांश नहीं होता, पर अनेक प्रकार से अपना ग़ुबार निकालने की तरकीबें हैं। अवश्य स्त्रियों के हाथ में ऐसे भी साधन हैं कि यदि वे चाहें तो पुरुषों की ज़िन्दग़ी किरकिरी कर दें और केवल इस ही शक्ति पर वे बहुधा पुरुषों के ख़िलाफ़ भी की जाती हैं। बहुत बार वे ऐसे अनुचित लाभ भी उठा लेती हैं जो उन्हें न उठाने चाहिएँ। पर अपनी रक्षा के इस हथियार का प्रयोग केवल फूहड़, कर्कश और कुमार्य ही करती हैं; और इस में यह मुख्य दोष है कि जो पुरुष सीधा-सादा और भले स्वभाव वाला होता है; उसही पर उस शस्त्र का प्रयोग सबसे अधिक होता है; और इसका लाभ सबसे नीच स्त्रियाँ उठाती हैं। अधिकाँश तामसी प्रकृति वाली और लड़ाकी स्त्रियाँ ही इस शस्त्र का विशेष उपयोग करती है; अर्थात् पुरुषों को जितने अधिकार दिये गये हैं, यदि इतने ही अधिकार स्त्रियों को भी दिये जायँ, तो जिन स्त्रियों के हाथ से इस सत्ता का सर्वथा दुरुपयोग होना सम्भव है––वे स्त्रियाँ ही ऐसे हथियार से पुरुषों की जीवनी बिगाड़ डालती हैं। सुशील और सहृदय स्त्रियाँ तो इस हथियार का उपयोग ही नहीं कर सकतीं, और जो विशाल हृदय वाली तथा उच्च गुणों वाली स्त्रियाँ होती हैं वे तो ऐसे शस्त्र को तुच्छ समझती हैं। दूसरी ओर जिन पुरुषों के ऊपर इस शस्त्र का प्रयोग किया जाता है