पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१५४

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या तलाक़ के क़ायदे बनाये जाते हैं। वे मनुष्य अकेले रहने के लिए ही पैदा होते हैं, इसलिए किसी को उनके साथ अपनी जीवनी बाँधने की आवश्यकता नहीं है। पर इस समय क़ायदे के अनुसार जैसी स्त्रियों को पराधीनता जारी है, यह जब तक न मिटेगी तब तक ऐसे स्वभाव वाली स्त्रियों की संख्या भी न घटेगी, बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायगी। यदि पुरुष अपने अधिकार का पूरा उपयोग करे तो निस्सन्देह स्त्रियों की दुर्दशा ही हो; पर उसके साथ जो मोह-माया स्त्रियों को जताई जाती हैं, यदि अधिकार प्राप्त करने का दरवाज़ा भी वैसा ही ढीला हो जाय तो स्त्रियाँ उन पर कितना स्वत्त्व कर लेंगी सो कोई नहीं कह सकता। इस समय के क़ानून ने स्त्रियों के अधिकारों की कोई मर्य्यादा निश्चित नहीं की, पर उसका माध्यम यही है कि उन्हें किसी प्रकार के अधिकार हैं ही नहीं: इसलिए व्यवहार में इनकी ऐसी दशा हो जाती है कि ये जितने अधिकारों पर कब्ज़ा कर सकें उतने ही इनके हैं। उन्हीं अधिकारों को वे भोग सकती हैं।

१२-सब से बढ़ कर सुख का मार्ग और न्याय के मूल पर स्थापित किया हुआ सङ्गठन यही हो सकता है कि क़ानून की दृष्टि में स्त्री और पुरुष दोनों के हक़ बराबर गिने जायँ, यह दैनिक व्यवहार और दैनिक जीवन में नैतिक शिक्षा का स्वरूप प्राप्त करावेंगे-इसके सिवाय और कोई साधन नहीं।