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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१७

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यदि पति की मृत्यु के समय स्त्री वहाँ उपस्थित न हो और वह स्त्री सती होना चाहती हो तो पति का शव एक दिन तक रक्खा जा सकता था, व्यास-संहिता में इसका अच्छा वर्णन है। किन्तु यह व्यवस्था ब्राह्मणों के ही लिए है। "मृतं सारमादाय ब्राह्मणी वह्निमाविशत्" +। अन्य वर्षो में 'अनुयमन' की प्रथा विशेष थी। पति का मृत्य- समाचार सुन कर उसका दुपट्टा, खडाऊँ, कटार या और कोई वस्तु लेकर सती हो जाने का नाम अनुगमन है। हिन्दू-शास्तों ने आत्मघात को पाप माना है, किन्तु सहगमन के समय में ऋग्वेद की ज्ञृचाओं का पाठ होता था और उस पाप का इछ क्षालन माना जाता था। ब्रह्मपुराण में इसकी विशेष व्याख्या की गई है. हिन्दू-शास्त्रो के अनुसार सती की सहायता करना पाप नहीं है। हिन्दू सती के दर्शन को अहोभाग्य समझते हैं ||। किन्तु अँगरजी


  • -कोल. डाय. सा. २, पृ० ४५९।

+-१८२५ ई० में पूने में एक तैलिन सती हुई थी। Steel's Hindoo Law and custom (1868) page 174. समाचार-पत्रो में ऐसी यहुत घटनाएं देखने में आती हैं।

+-व्यास-सहिता, अध्याय १, सोक ५३ ।

&-कोल°डाय० भा० २, पृ० ४५६ ।

|| सुप्रसिद्ध चित्तौरगढ़ में तीन बार कई कई सौ रानियों का साका हुआ है। महाराष्ट्र देश में 'थेउर' का स्थान भी इस ही प्रकार प्रसिद्ध है।