जायँ, इस प्रकार का निश्चय कर डालना, तथा स्त्रियों के चाहे जितने योग्य होने पर भी केवल पुरुषों के हित की रक्षा के लिए इस प्रकार के अधिकार और धन्धे वर्ज्य और निषिद्ध
कर देना-क्या छोटा सा अन्याय है। पिछली दो शताब्दियों में लोगों को जब-जब अमुक काम या अधिकार के लिए स्त्रियों के योग्य न होने का उत्तर देना पड़ता था, तब-तब ये यह नहीं कहते थे कि स्त्रियों की मानसिक शक्ति पुरुषों से कम है। क्योंकि उस समय अनेक सार्वजनिक कामों में स्त्रियाँ प्रकट रूपसे भाग ले सकती थीं, और उनकी शक्ति समय-समय पर कसौटी पर चढ़कर साबित उतरती थी, इसलिए पुरुष इस बात के कहने में हिचकते थे कि स्त्रियों की शक्ति पुरुषों से कम है। उस समय स्त्रियों को अधिकारों के अयोग्य बताने की अपेक्षा यह कारण पेश किया जाता था कि समाज की भलाई के लिए यह आवश्यक है-
और समाज की भलाई का अर्थ होता था,-पुरुष-वर्ग की भलाई। "राजकीय कारण" कह कर जिस प्रकार राज्यकर्ता अन्यायी और घातकी कामों में हाथ डालते हैं-उसी ही प्रकार "समाज की भलाई" के नाम से पुरुष-वर्ग का स्त्री-वर्ग पर अन्याय करना सर्वसम्मत था। किन्तु इस समय के अधिकार सम्पन्न लोग बड़ी ही सौम्य भाषा का उपयोग करते हैं, वे जब किसी पर अत्याचार करते है, तब "इसी में उसका हित है," की डौंडी पीट देते हैं। इसी ही प्रकार पुरुष जब
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