स्त्रियों को विशेष-विशेष बातों से रोकना चाहते हैं,-"यह काम तो इनसे होही नहीं सकता, इस काम के लोभ में स्त्रियाँ सचमुच अपने वास्तविक सुख को खो बैठेंगी। ये जीवन की सफलता के सीधे रास्ते को छोड़ कर दूसरी ओर जा रही हैं," तब ऐसे ही ऐसे बहाने निकाले जाते हैं। जिन मनुष्यों की यह धारणा हो कि इन बहानों में भी कुछ सचाई के अंश हैं तो उन्हें अपने तमाम व्यवहारों में इस ही का अनुसरण करना चाहिए। पर यदि इस बात की खोज ही करनी है तो स्त्रियाँ पुरुषों से बुद्धि में कम हैं इसके केवल मान बैठने ही से काम न चलेगा। उच्च प्रतिभा सम्पन्न कामों और कर्त्तव्यों के योग्य बुद्धि रखने वाली स्त्रियाँ उन कामों के योग्य बुद्धि रखने वाले पुरुषों से संख्या में कम हैं, इस बात को केवल कह देने ही से कुछ नहीं होता। बल्कि पुरुषों को डङ्के की चोट यह साबित कर देना चाहिए कि फलाने काम के योग्य बुद्धि रखने वाली स्त्री इस संसार में नहीं मिलेगी और अत्यन्त बुद्धिमान से बुद्धिमान् स्त्री की मानसिक शक्ति भी साधारण से साधारण बुद्धि वाले पुरुष से नीची ही होगी। क्योंकि ऊँचे से ऊँचे अधिकारों को भोगने और अच्छे से अच्छे कामों को करने में जिस स्पर्द्धा को समाज महत्त्व देती है, यदि स्त्रियाँ प्रकृति से वास्तव में
नीची ही हैं तो स्त्रियों के लिए भी स्पर्द्धा का दरवाज़ा खोलने में कोई हानि नहीं-डरने का कोई कारण नहीं। यदि
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