पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१७५

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यह प्रथा चल जाय तो परिणाम यह होगा कि बड़े से बड़े कामों में पुरुषों से स्त्रियों की संख्या कम हो सकती है, क्योंकि जिस काम में स्त्रियों को दूसरों की स्पर्द्धा का डर न होगा उसे ही वे सब से अधिक पसन्द करेंगी। कोई मनुष्य स्त्रियों के सुधार का चाहे जितना कहर से कट्टर विरोधी हो पर उसका छुटकारा भी इस बात को माने बिना तो नहीं हो सकता कि, प्राचीन इतिहास और वर्तमान समय के हमारे अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि पुरुष जिन-जिन कामों को करते हैं उन-उन के करने की योग्यता बहुत सी स्त्रियों में होती है, बल्कि उन कामों को बड़ी ख़ूबी से पूरा करके स्त्रियों ने रख दिया है। स्त्रियों के ख़िलाफ़ अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है कि कुछ इने-गिने कामों में अभी तक स्त्रियों ने अपने आप को पुरुषों से अधिक साबित नहीं किया-पुरुषों के समान अलौकिक काम अभी तक किसी स्त्री के हाथ से नहीं बन पड़े-सारांश यह है कि कुछ कामों में स्त्रियो ने सब से ऊँचा स्थान नहीं प्राप्त किया। पर इसके साथ ही इस बात पर भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि बुद्धि-सामर्थ्य पर आधार रखने वाले कामों में क्या कोई काम ऐसा नहीं है कि जिसमें स्त्रियाँ पहला नहीं तो दूसरा स्थान भी प्राप्त न कर सकी हों? इतना सब कुछ होने पर भी स्त्रियों को पुरुषों के साथ स्पर्द्धा में न उतरने देना-रोकना-क्या अन्याय नहीं है? और समाज को क्या इससे कम हानि