है? फिर जिन पुरुषों को वे काम दिये जाते हैं वे बहुत बार स्त्रियों से भी कम योग्यता वाले होते हैं,-यदि उन पुरुषों और स्त्रियों की परीक्षा ली जाय तो वे पुरुष बहुत पीछे रह जायँगे-इस प्रकार के बहुत से उदाहरण हमारी आँखों के सामने से गुज़र जाते हैं-इसे न मानने के लिए कौन तैयार है? यदि यह मान लिया जाय कि उनसे अधिक योग्यता वाले पुरुष और किन्हीं कामों में लगे होंगे, पर इससे वास्तविक स्थिति में क्या अन्तर होता है? क्या प्रत्येक स्पर्द्धा
वाले काम में ऐसा नहीं हुआ करता? ऊँचे से ऊँचे अधिकार भोगने के लिए और प्रतिभा सम्पन्न कार्य सम्पादन करने वाले पुरुष क्या संसार में इतने अधिक होगये है कि मनुष्य-समाज की वास्तविक योग्यता-सम्पन्न व्यक्ति से काम लेने के लिए नाँहीं करनी पड़े? किसी महत्त्व के या सार्वजनिक काम के लिए जब किसी योग्य मनुष्य की आवश्यकता हो, तब क्या इस बात का प्रमाण मिल चुका है कि उस योग्यता वाला व्यक्ति पुरुष-वर्ग में से ही मिलेगा। क्या हमें ऐसा कोई ज़बर्दस्त कारण मिल चुका है कि जिसके आधार पर हम मनुष्य-जाति के आधे भाग को बिल्कुल अयोग्य मान लेवें? और उस वर्ग वालों की बुद्धि चाहे जैसी विलक्षण और अलौकिक हो-फिर भी उनके लिए यह निश्चय कर डालें कि वह किसी काम की नहीं-और फिर क्या हम यह भी साबित कर सकते हैं कि हमारे उस निश्चय से समाज को