कोई हानि न होगी? कदाचित् हम स्त्रियों की विलक्षण से विलक्षण बुद्धि से भी काम न लेने का दृढ़ संकल्प कर बैठें, और हमारी यह भी दिलजमई हो गई हो कि समाज की भी इससे कोई हानि न होगी-फिर भी संसार में अपना नाम और इज्ज़त कमाने के लिए जो कुछ साधन हैं उन्हें हम स्त्रियों के लिए सदैव बन्द करते हैं और इस सर्वसम्मत सिद्धान्त पर पानी फेरते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन-निर्वाह का काम चुनने में स्वाधीन है-तो क्या यह
काम अन्याय नहीं है? फिर यह अन्याय केवल स्त्रियों को ही नुक़सान पहुँचाने वाला नहीं है, बल्कि जो-जो पुरुष स्त्रियों से लाभ उठा सकते थे उन सब का नुक़सान है। यदि यह क़ानून बना दिया जाय कि अमुक-अमुक वर्ग के मनुष्य विकालत, वैद्यक या पार्लिमेण्ट के सभासद होने योग्य नहीं हैं-तो इसका अर्थ यह नहीं है कि जिन मनुष्यों को रोका गया है उन्हीं का नुक़सान होगा-बल्कि जिन-जिन को वकील, वैद्य की आवश्यकता पड़ती है, तथा जिन्हें पार्लिमेण्ट में प्रतिनिधि भेजने का हक़ है-उन सब को बड़ी भारी हानि होनी सम्भव है। सबसे पहले तो जिस क्षेत्र से उम्मीदवार चुने जाते हैं वह क्षेत्र ही उतने परिमाण में कम हो जायगा, दूसरे स्पर्द्धा का जो यह उत्तम गुण है कि अधिक प्रतिस्पर्द्धियों में विशेष परिश्रम और मनोयोग-पूर्वक काम किया जाता है वह कम होगा-जब स्पर्द्धा करने वालों की
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