सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १६३ )


के विषय में लोगों की जो समझ बन गई है-अर्थात् चञ्चलता आदि दोष जो स्त्रियों के स्वभाव में माने जाते हैं, उन रानियों के चरित्र में इनके विरुद्ध गुणों की तो विशेष ख्याति हुई है। स्त्रियों के राज्य में जितनी अधिक उनकी बुद्धि की सामर्थ्य दिखाई देती है, उस ही के समान उनके मन की दृढ़ता, धीरता, विचार, समदृष्टिपन आदि गुण दिखाई देते हैं। सिंहासन पर बैठने वाली रानियों के अलावा बड़े-बड़े प्रान्तों की सूबेदारिनें, नाबालिग़ राजा के समय में राजकार्य चलाने वाली राजमाताएँ तथा स्त्रियों के अन्य प्रबन्ध-सम्बन्धी कामों की जब हम गिनती करते हैं, उस समय राजकार्य में विशेष यश प्राप्त करने वाली स्त्रियों की संख्या बहुत अधिक होजाती है।*[] यह बात इतनी निर्विवाद है कि इसका कोई उत्तर


  1. * इस स्थल पर ग्रन्थकार ने निम्नलिखित टिप्पणी दी है,-
    इस अवसर पर एशिया और योरप दोनो देशो पर विचार करेंगे तो इसकी सत्यता का प्रमाण बहुत कुछ मिलेगा। हिन्दू-देशों का एक-आध संस्थान या राज्य यदि उत्कृष्ट नियमों पर चल रहा हो, जागृति और होशियारी से चल रहा हो, प्रजा पर किसी प्रकार का अन्याय न होता हो, प्रबन्ध अच्छा हो, दिन प्रति दिन-खेती आदि का सुधार होता जाता हो, प्रजा की प्रसन्नता बढ़ती जाती हो—तो इसे निश्चय समझो कि ऐसे चार राज्यों में से तीन का प्रबन्ध स्त्रियों के हाथ में होगा। मुझे बिल्कुल आशा नही थी कि हिन्दू-राज्यों में यह प्रकार होगा-किन्तु देशी राज्यो के हिसाब-किताब से मेरा एक अर्से तक सम्बन्ध रहा है और सरकारी दफ्तर से मैं यह तथ्य संग्रह कर सका हूंँ। इस प्रकार के उदाहरणो की कमी नहीं है। हिन्दुओं के रीति-रिवाज के अनुसार स्त्रियों को प्रत्यक्ष राज्य करने का अधिकार नहीं है, पर राज्य का अधिकारी जब छोटी अवस्था का यानी नाबालिग होता है, उस समय राजमाता को नियमानुसार राज्य करने का एक होता है। और ऐसे प्रसङ्ग अक्सर होते हैं, क्योंकि राजा विशेष करके आलसी और विषयासक्त होने के कारण अकालमृत्यु के ग्रास बनते हैं। ऐसी राजरानियाँ प्रकट होकर कभी लोगों के सामने नहीं बैठ सकतीं। अपने कुटुम्बों को छोड़ कर किसी पर-पुरुष से वे बातें नहीं कर सकतीं। यदि कभी ऐसी आवश्यकता ही हो तो परदे की आड़ से कहती सुनती हैं। उन्हें पढ़ना-लिखना बिल्कुल नहीं आता, यदि किसी को कुछ आता भी हो तो दुर्भाग्य से उनकी भाषा में ऐसी पुस्तके ही नहीं हैं जो राजकार्य सिखा सकें। इन सब बातों को ध्यान में रखकर जब उन स्त्रियों के राजकार्य को देखते हैं तब यही सिद्धांत बनता है कि स्त्रियाँ सर्वथा राज्य करने के लिए योग्य हैं।