में रखने की आवश्यकता होती है, उन विषयों में स्त्रियों का पुरुषों से कम रह जाना भी इन्हीं कारणों से होगा-इसका कारण भी यही हो सकता है। फिर भी यह भेद उत्कृष्टता का बाधक तो नहीं हो सकता। इसका परिणाम यही होता है कि अमुक विषय में स्त्रियाँ पुरुषों के समान प्रभावित नहीं होती; पर इससे यह सिद्धान्त नहीं निकलता कि स्त्रियाँ किसी भी बात में पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकतीं-इससे यह सिद्ध नहीं होता कि स्त्रियाँ पुरुषों के समान बुद्धिशालिनी नहीं हैं,-तथा इससे यह भी सिद्ध नहीं होता कि
व्यवहार में उनकी बुद्धि का उपयोग कम होता है। बल्कि, मानसिक शक्तियों से अन्य काम न लेकर उन्हें एक ही ओर झुका देना-समग्र विचार-शक्ति को एक ही विषय में लीन कर देना-एक ही काम में एकाग्र कर देना; मानुषी शक्तियों के लिए कितना हितकर और स्वयंसिद्ध है, सो बताना अभी बाक़ी है। बुद्धि की एकाग्रता के विषय में मेरा मत है कि, एकाग्रता की आदत के द्वारा बुद्धि का एक विशिष्ट विकाश करने से एक ओर जितना लाभ होता है; दूसरी ओर उतनी ही हानि होती है। क्योंकि एक काम को छोड़ कर संसारके और कामों के योग्य उसकी बुद्धि नहीं रहती। और विमर्श या तत्त्वचिन्तन के विषय में मेरी राय है कि किसी गूढ़ प्रश्न पर निरन्तर अस्खलित रीति से विचार करने की अपेक्षा, बीच-बीच में विश्राम लेते हुए, या अन्य कामों को देख कर फिर
पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२१०
दिखावट
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १८९ )