पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२१७

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भली-भाँति समझ में आना मुमकिन नहीं। स्त्री-पुरुषों के चाल-चलन और व्यवहार में भेद होने के जो बाहरी कारण दीखते हैं उनकी ओर जिज्ञासु-वर्ग जब तक लक्ष्य न करेगा, तथा वर्त्तमान सृष्टिशास्त्रवेत्ता और मानसशास्त्र के अभ्यासी इन कारणों को तुच्छ समझ कर उपेक्षा की दृष्टि से देखेंगे, तब तक हमें इस विषय में कुछ भी ज्ञान प्राप्त करने की आशा रखनी ही न चाहिए। न्यारे-न्यारे व्यक्तियों में जो मुख्य भेद दीखता है, उसका मूल खोजने के लिए सृष्टिशास्त्र और मानसशास्त्र के अभ्यासी या तो जड़ सृष्टि का या चैतन्य सृष्टि का पृथक्करण करने लगते हैं, किन्तु जो विद्वान यह कहता है कि इन भेदों के कारण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का संसार और समाज का सम्बन्ध भिन्न-भिन्न होता है तो उसे वे तुच्छ दृष्टि से देखते हैं।

१४-लोगों ने स्त्रियों के स्वभाव के विषय में जो गढ़न्त गढ़ा है वह ऐसा हँसी दिलाने वाला है कि उस में पृथक्करण, विमर्श आदि शास्त्रीय पद्धति का तो नाम-निशान भी नहीं मिलता; पर ऊपर ही ऊपर के अन्दाजों, प्रमाणों और जो कुछ दार्शनिक प्रमाण मिल गये उन से जिसे जो अच्छा लगा उसने अपने अनुभव से वैसा ही अनुमान बना डाला। न्यारे-न्यारे देशों के लोक-मत और लोक-स्थिति के असर से उस देश वाली स्त्रियों के स्वभाव के जो-जो अङ्ग विकसित होते हैं-उस ही के अनुसार अन्दाज़े भी बाँधे जाते हैं। एशिया