पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १९७ )


के लोगों की समझ है कि, स्त्री स्वभाव ही में अत्यधिक विषयासक्त होती है। हिन्दुओं में जो स्त्री की निन्दा की गई है,*[१] सो विशेष कर के इसी दोष का आरोपण कर के। अँगरेज़ समझते हैं कि स्त्रियाँ स्वभाव ही से मन्द और निरुत्साही होती हैं। स्त्रियों की चञ्चलता और अस्थिरता की विशेष उत्पत्ति फ्रेंच भाषा से हुई है। इङ्गलैण्ड वालों का ख़याल है कि स्त्रियाँ पुरुषों से ज़ियादा ईमानदार और पवित्र हैं। फ्रान्स से इङ्गलैण्ड में स्त्रियों की बेईमानी अधिक दोषास्पद मानी जाती है, तथा इङ्गलैण्ड की स्त्रियों पर लोकलज्जा का असर विशेष होता है। इस स्थान पर यह कह देना आवश्यक है कि, इङ्गलैण्ड वालों की स्थिति ऐसी होगई है कि स्त्री, पुरुष या समग्र मनुष्य-जाति के विषय में यदि उन्हें अनुमान करना हो कि, कौनसा बर्ताव स्वाभाविक है और कौनसा अस्वाभाविक-

तो वे इस में अयोग्य हैं। और यदि केवल अपने ही देश पर से उन्हें यह अनुमान बाँधना हो तो वे और भी अयोग्य हैं। क्योंकि इस देश में मनुष्य का मूल स्वभाव सर्व्वथा बदल गया है। चाहे इसे अच्छा कहो या बुरा, किन्तु संसार की सब जातियों से विशेष इन्हीं की मूल स्थिति में परिवर्त्तन हुआ है। अन्य सब प्रजाओं की अपेक्षा इन पर सुधार और शिक्षा का सब से अधिक असर हुआ है। यदि किसी देश में इस प्रकार की सामाजिक शिक्षा सफल हुई हो कि, जिस में समाज-


    • अनृतं साहसं माया मूल मूर्खत्वमतिलोभिता।

    अशुचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः, स्वभावजाः।