पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२३२

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प्रवृत्ति उस प्रभाव को नष्ट करके अपनी आँखें ऊँची कर सके।

२२-स्त्रियों में बुद्धि की कमी साबित करने के लिए बुद्धिमान् लोग यह सुबूत पेश करते हैं कि ललितकला सीखने में स्त्रियों को किसी प्रकार की रुकावट नहीं है,-अर्थात् गायनकला, नर्तनकला और बाजे बजाना आदि सीखने में औरतें आज़ाद हैं। इन कलाओं को सीखने में लोकमत या रूढ़ि उनके ज़रा भी ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि इन बातों में उल्टा उनका दिल बढ़ाया जाता है कि उन्हें सीखना ही चाहिए; तथा स्त्री-शिक्षा के साथ भी इस पर पूरा ध्यान दिया जाता है और खाते-पीते घरों की स्त्रियों के लिए तो यह विषय सभ्यता का चिह्न माना जाता है, जो स्त्रियाँ इस में निपुण होती हैं वे इज्ज़त की नज़र से देखी जाती हैं। पर यह सब कुछ होते हुए भी स्त्रियाँ और बातों में जैसे पुरुषों से पीछे हैं, वैसे ही इस विषय में भी वे पीछे ही पड़ी है। स्त्रियों के इस प्रकार पीछे रह जाने का कारण वही है जिससे हम भली भाँति परिचित हैं,-अर्थात् जो मनुष्य सिर्फ अपना शौक़ पूरा करने के लिए किसी विद्या, धन्धे या कला को सीखता है, वह उस मनुष्य में पीछे रहता ही है जिसने उस विद्या, धन्धे, या कला को अपना पेट भरने के लिए सीखा है। इस देश (इङ्गलैण्ड) में सभ्य स्त्रियों के लिए ललित कलाओं का सिखाना अवश्य जरूरी समझा जाता है, पर उस सिखाने का लक्ष्य यह नहीं होता