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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२३३

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कि उस से वे अपना पेट भरें या समाज में उच्च स्थान पा सकें। अधिकांश स्त्रियाँ शौक़ पूरा करने के लिए न्यारी न्यारी कलाएँ सीखती हैं। इस कायदे में ख़राबी तो है ही, पर वह ख़राबी ऊपर वाली बात से और भी ज़ियादा मजबूत हो जाती है। औरतों को गाना जरूर सिखाया जाता है, पर वह सिर्फ ताल के साथ गाना या बजाना ही भर होता है; इसके साथ ही उन्हें गाना बनाने की शिक्षा नहीं दी जाती। इसलिए संगीतकला के जिस हिस्से में पुरुष स्त्रियों से अधिक होते हैं वह संगीत-रचना है। ललितकलाओं में से जिस कला को स्त्रियाँ अपना पेट पालने के काम में लाती हैं वह सिर्फ एक नाट्यकला है; इस कला में यदि स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक अच्छी नहीं है तो बहुत खराब भी नहीं हैं। यदि कलाओं के ज्ञान में ही स्त्री और पुरुष की बुद्धि को तौलना है तो उन कला सीखे हुए पुरुषों के साथ उनकी बराबरी करनी ठीक होगी, जिन्होंने पेट पालने के इरादे से कला को नहीं सीखा। उदाहरण के तौर पर जिन पुरुषों ने सिर्फ़ अपना शौक पूरा करने के लिए एक-आध ठुमरी टप्पा बना डाला हो उनसे स्त्रियों के बनाये हुए गीतों का मुकाबिला करने में वे किसी तरह कम न जचेंगी। ऐसी स्त्रियों की तादाद बहुत ही कम है जो तस्वीरें बना कर अपना गुज़ारा करती हों, पर फिर भी इस काम का अनुभव प्राप्त करने के लिए उन्हें जो थोड़ा सा समय मिला है,-इस बात को