पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२३५

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भरी मालूम होगी। पर यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यदि यह बात किसी व्यक्ति में प्रकृति से है, पर फिर भी यदि वह रात-दिन उस ही में न लगा रहेगा तथा उस विषय का पूरा अभ्यास न करेगा तो संगीत रचना के काम में उसकी प्रकृत शक्ति किसी काम न आवेगी। पुरुष-वर्ग में भी संगीत-शास्त्र की अपूर्व रचना करने वाले व्यक्ति इटली और जर्मनी में हुए हैं। और इन देशों की स्त्रियाँ साधारण शिक्षा या ख़ास विषय की शिक्षा में इङ्गलैण्ड और फ्रान्स की स्त्रियों से बहुत पीछे हैं। यदि हम यह कह दें कि उन्हें शिक्षा दी ही नहीं जाती, या उनकी मानसिक शक्तियों पर ऊँचे संस्कार नहीं बैठते तो इस में ज़रा भी अतिशयोक्ति न होगी। इस देश (इङ्गलैण्ड) में वाद्यकला और संगीत-रचना के मूल तत्त्वों में पारङ्गत पुरुष सैंकड़ों हज़ारों होंगे,-पर स्त्रियाँ इतनी ही मिलेंगी जो उँगलियों पर गिनी जा सकें। यदि स्त्री-पुरुषों में से इसका औसत निकाला जाय तो जिस दशा में इस विषय के पचास प्रवीण पुरुष निकलेंगे-उस दशा में वैसी प्रवीण केवल एक ही स्त्री निकलेगी-इस से अधिक की आशा व्यर्थ है। पिछली तीन शताब्दियों में जर्मनी और इटली में इस विषय के प्रवीण पुरुषों की संख्या पचास के बराबर नहीं हुई-तो इस दशा में एक स्त्री के प्रवीण निकलने की भी आशा किस तरह की जा सकती है।

२३-जिन काम-काजों और उद्योग-धन्धों में स्त्री-पुरुष