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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२४

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यदि गर्भवती विधवा का हिस्सा सम्पत्ति पर पहले न लगाया गया हो तो पीछे पुत्र के उत्पन्न होने पर लगाया जा सकता है। दक्षिण भारत को कुछ शूद्र जातियों में यह चाल थी कि, एक पुरुष की जितनी स्त्रियाँ हों वे सब अपनी सन्तान के नाम पर पति की सम्पत्तिका समान भाग बँटा लेती थी ।।

यदि कोई पुरुष बिना सन्तान के मर जाय तो उसकी सम्पत्ति के मालिक (दायद) रिश्तेदार हैं। यदि किसी को अपनी सम्पत्ति को यह गति न मंजूर हो तो वह दत्तक (गोद) ले सकता है। हिन्दू-शास्त्रों ने बिना पुत्र वाले की सद्गति नहीं मानी है, इसी की पूर्ति के लिए दत्तक की चाल चली थी। कई सौ वर्ष पहले दत्तक लेने का अधिकार केवल पुरुषों को ही था। किन्तु धीरे-धीरे विधवाओं के दत्तक लेने की प्रथा चल पड़ी। दत्तक पुत्र धर्मशास्त्र के अनुसार माता और पिता दोनों को पिण्डदान कर सकता है। किन्तु विधवा विशेष करके पति के नाम पर ही दत्तक ले सकती है, अपने पर नहीं। दत्तक लेने में विधवा को (शायद) रिश्तेदारों की आज्ञा लेनी आवश्यक है। विधवा जैसे दत्तक ले सकती है वैसे ही दे भी सकती है, बल्कि देने में विधवा को अधिक कठिनाई नहीं है।


  • -हिन्दू दायभाग। याज्ञवल्क्य ।

†-Sır T. Strange's Hindoo Law (1830) Vol. I. P. 205

+-हिन्द, विधवा के लिए इस समय हाईकोर्ट में यही मत माना जाता है