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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५

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१।


अपने पति की सम्पत्ति पर विधवा का सीधा हक नहीं है, किन्तु उसका जो कोई वारिस हो, उससे अन्न-वस्त्र का हक है। यदि विधवा सब के साथ रहै तब तो सब के बराबर उसका भरण-पोषण होताही जायगा। किन्तु यदि वह न्यारी भी रहना चाहे तो अपना कुछ मासिक करवा सकती है। धर्मशास्त्र के अनुसार यह रकम इतनी होनी चाहिए कि जिससे अपना अन्न-वस्त्र का गुज़ारा करके विधवा पति की श्राध क्रिया भी कर सके। यदि पति की सम्पत्ति इतनी कम हो कि जिसले विधवा का निर्वाह न हो सके तो इसका भार रिश्तेदारी पर है।

पति की स्थावर सम्पत्ति बाग, मकान, जमीन, कुआ आदि का विधवा के जीवित रहते इतना ही हक़ है कि वह उसकी उपज का उपभोग करे। किन्तु उसे नष्ट नहीं कर सकती अर्थात् उस मिल्कियत को किसी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचा सकती। यदि बेचने या गहने रखने की नौबत ही आ जाय तो सब काम रिश्तेदारों की सलाह से होगा। पति के वार्षिक बाद या कन्या के विवाह में वह बेचा जा सकता है।

विधवा की मृत्यु के अनन्तर जो स्थावर या अस्थावर सम्पत्ति होगी वह सब रिश्तेदारों की होगी। केवल उसका निज का (स्त्रीधन) जो कुछ होगा उस पर लड़की का हक हो सकेगा। क्योकि पुत्री के पिण्डों में पिता की अपेक्षा माता का अंश -