पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५४

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व्यर्थ है। यह कभी न समझना चाहिए कि यह पृथिवी स्वर्ग बन गई है; यदि यह पृथ्वी स्वर्ग हो तो दुष्ट मनुष्यों की मनोवृत्तियों को रोकने के लिए क़ानून बनाने की ज़रूरत ही न रहे। फिर यह मानना चाहिए कि नीच से नीच मनुष्य के हृदय में पवित्रता देवी का निवास है। आज-कल के ज़माने में जो सब नियम और रीतियाँ उदार नियमों पर चलाई जाती है उस उदारता में विवाह की पराधीनता वाला नियम कलङ्क के समान माना जाता है; असङ्गत जान पड़ता है। आज-कल के ज़माने में तमाम व्यवहार जिन नियमों पर चलाये जाते है, वे मनुष्य-जाति के कड़े परिश्रम और लम्बे अनुभव के अन्त में स्वीकार किये गये हैं। फिर विवाह-सम्बन्ध को उसी प्रथा पर चलने देने से उस अनुभव पर पानी फिरने के सिवा और कुछ नहीं होता। नीग्रो लोगों को ग़ुलाम बनाने की प्रथा अभी बन्द हो गई। इसलिए इस समय संसार में ग़ुलामी की केवल एक ही प्रथा बाक़ी है तथा वह ग़ुलामी की कितनी विचित्रताओं से भरी है। प्रत्येक मानसिक शक्तियुक्त एक मनुष्य प्राणी एक मनुष्य-प्राणी के हाथ में सौंप दिया जाता है—और उस प्राणी को सब तरह की आज़ादी होती है कि वह उससे चाहे जैसा व्यवहार करे-यह आज़ादी भी इस आशा से कि अधिकारी-प्राणी अपने अधिकार का उपयोग अधीन प्राणी के लाभ के लिए ही करेगा। इस ज़माने में क़ायदे से मानी हुई

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