पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२७९

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नष्टप्राय हो जाते हैं। यदि लोगों की परोपकार-वृत्ति तथा साधन-सम्पत्ति के इस अनुचित उपयोग का असली कारण खोजेंगे-जिसके द्वारा मनुष्य-समाज का कल्याण होने के बदले हानि ही अधिक सम्भव है, तो मालूम होगा कि इस में स्त्रियो का ही हाथ सब से आगे है—इस में स्त्रियों का ही धन सब से अधिक ख़र्च होता है। यह सब कुछ होने पर भी यदि कहीं धर्म या दान की व्यवस्था स्त्रियों के हाथ में होती है-तो वहाँ ऐसी भूलें कम देखी जाती हैं। जब स्त्रियाँ इस व्यवस्था की अधिकारिणी होती हैं तब अपात्र को दान देने से, तथा बिना समझ-बूझ के धर्म करने से समाज की कितनी हानि होती है, इसे वे पुरुषों से अधिक स्पष्ट समझ लेती हैं, क्योंकि प्रत्यक्ष घटनाओं को पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियाँ शीघ्र और स्पष्ट समझ लेती हैं, तथा जिन मनुष्यों से उनका सीधा सम्बन्ध होता है उनके मनों को भी वे बहुत जल्द परख लेती है। किन्तु यह घटना अधिकांश ऐसी होती है कि धार्मिक बातों से स्त्रियों का सम्बन्ध तो केवल धन देने मात्र का ही होता है, और उन्हें यह देखने का अवसर ही नहीं मिलता कि उनके दिये हुए धन का उपयोग किस प्रकार होता है। इसलिए आगे से ही उस विषय में वे अनुमान किस प्रकार लगा सकती हैं? ऐसे परोपकार और दया का परिणाम बहुत ही ख़राब होगा इसे वे समझ ही कैसे सकती हैं? इस समय स्त्रियों की जो दशा है, इसी में पैदा होने वाली, और इसी स्थिति से सन्तुष्ट