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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/३०१

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कुटुम्ब के जाल में फँसी होती हैं और जबतक उस जाल को अपने सिर लादे रहती हैं, तब तक उन की शक्तियों के लिए वही क्षेत्र बना रहता है। किन्तु जो स्त्रियाँ किन्हीं ख़ास विषयों के योग्य है, किन्तु उनके हाथ ऐसा कोई अवसर ही नहीं आता कि उसे कर सके, उन्हें क्या करना चाहिए? (वर्तमान समय में ऐसी स्त्रियों की संख्या बढ़ती जाती है; अर्थात् बहुत स्त्रियों को अपनी अविवाहित जीवनी बनानी पड़ती है) इस ही प्रकार जो स्त्रियां काल के प्रभाव से निःसन्तान हो गई हों, या जिनको पुत्र उदरनिर्व्वाह के लिए विदेश में रहते हों, या बड़े होकार विवाह करके अपना न्यारा काम कर रहे हो––उनका क्या हाल होगा, इसका भी विचार करना चाहिए। हम ऐसे सैंकड़ों उदाहरण सुनते और देखते हैं कि व्यवसायी और काम करने वाले तमाम उमर व्यवसाय में निमग्न रह कर दो पैसे अपनी गिरह में करके अपनी बाक़ी जीवनी आराम से बिताते है; किन्तु फिर कोई ऐसा विषय नहीं होता जिस में उनका जी लगा रहे और उनका निरुद्यमी जीवन भार मालूम होता है, वे निरुत्साह और उदासीनता में लीन हो जाते हैं और अन्त में अकाल मृत्यु के ग्रास बनते हैं। बहुत सी कर्तव्यपरायण स्त्रियों की दशा भी ऐसी ही होती है; पर उनका तो किसी को ख़याल ही नहीं होता। उन्हें संसार की कड़ी घाटियो से उत्तीर्ण होना पड़ता है अर्थात् अपने पति की गृहव्यवस्था वे भलीभांति कर चुकी होती है, बाल-