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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/७९

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भिक नहीं सिद्ध होती और उसके पक्ष में इस प्रकार का कोई अनुमान नहीं बाँधा जा सकता। पर आगे बढ़ कर मैं यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि, इतिहास-क्रम और दिनों दिन सुधार की ओर बढ़ने वाली मनुष्य-जाति की वृत्ति, यदि इन दोनों को सामने रख पर विचार करेंगे तो स्त्री-पुरुषों में आज जो अधिकार-वैषस्य की प्रथा प्रचलित है-इस प्रथा के अनुकूल कोई अनुमान उसमें से न निकलेगा, बल्कि इसके विरुद्ध अनुमान ही पैदा होगा। यदि आज तक के मनुष्य-जाति के उन्नति-क्रम को हम सोचें और यह विचारें कि इस समय के लोगों का विचार-प्रवाह किस ओर बह रहा है—तो साफ़ मालूम होगा कि भूतकाल की अयोग्य रूढ़ियों जैसे एक के बाद एक बन्द होती गई वैसे ही स्त्रियों की पराधीनता भी अवश्य बन्द होनी चाहिये; क्योंकि यह प्रथा आने वाले समय के लिए असंगत और अयोग्य है।

१३-इन बातों को हल करने के लिए इन प्रश्नों का सोच लेना आवश्यक है कि इस ज़माने का विशेष लक्षण क्या है? प्राचीनकाल की परिपाटी, लोक-व्यवस्था, जीवन-प्रवृत्ति और इस ज़माने की परिपाटी, लोक-व्यवस्था, जीवन-प्रवृत्ति में मुख्य भेद कौन-कौन से हैं? आज जो प्राचीनकाल से मुख्य भेद है वह यह है कि, मनुष्य जिस स्थिति में पैदा होता है उस ही स्थिति में अन्त तक नहीं रह सकता; ऐसे नियम और ऐसी रूढ़ियाँ आज नहीं है कि जिनके कारण जन्म से मृत्यु