पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/९

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iv

रूढ़ियों से सना है; हमारे जीवन का कोई भाग स्वाधीन नहीं, हम आकण्ठ रूढिमग्न है। चीन देश की पुरानी प्रथा के अनुसार जैसे स्त्रियों को लोहे के जूते पहना कर उनके पाँव छोटे कर डाले जाते थे, वैसे ही हिन्दू-सन्तान को जन्म से ही रूढ़ियों का जामा पहनाया जाता है जिससे उसके हृदय और आत्मा के विकाश पर घना काला परदा गिर जाता है। पथरीली जमीन पर उगे हुए वृक्षों की जड़ों के प्रयास जैसे व्यर्थ जाते है और वे सिर पटक कर भी वृक्ष को पानी की बूँदें नहीं नसीब करा सकतीं,-इसी प्रकार हिन्दू-समाज के कुछ उन्नतमना पुरुषों के प्रयास सर्वथा व्यर्थ जाते हैं। रूढ़ि रूपी पत्थर उन्हें जलकणों से नहीं मिलने देते, जिससे वे समाज रूपी वृक्ष को हरा भरा कर सके। समाज का एक स्थान पर ठहरना ही उसका अवसान है, यही बात दूसरे शब्दो में यो कही जा सकती है कि लोग जिसे पूर्ण शान्ति कहते है आज हिन्दू-समाज की भावनाएँ एक आलसी के हवाई महलों से अधिक कीमती नहीं है। एक उडाऊ-खाऊ पुत्र जैसे अपने पिता की सम्पत्ति बरबाद करके पाँच आदमियों में अपने उन दिनों का बखान करता है, तथा उसकी बातों का जितना मूल्य हो सकता है-आज के हिन्दू समाज का और उसकी बातों का उससे अधिक मूल्य नही हो सकता। जिस घड़ी की नियमित कूक चौबीस घण्टो की होती है-उसकी चाबी का समय बीत जाने पर जैसे