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स्वदेश-

साहब बहादुर को अपने लिए कुली-मजदूर जुटाने थे। बड़ी मुशकिल से साहब को तीस कुली मिले।

इसके बाद यात्रामें साहब को बड़ी चिन्ता रही कि कुली लोग कहीं छोड़कर भाग न जायँ। साहबने इसके लिए चेष्टा भी बहुत की। कुलियों के भाग जानेका यथेष्ट कारण भी था। लेंडर साहब ने अपने भ्रमण वृत्तान्तके पचीसवें परिच्छेद में लिखा है कि "ये कुली जब चुप चाप मन मारे पीठ पर बोझा लादे करुणाजनक श्वास-कष्ट से हाँफते हाँफते ऊँचे से और भी ऊँचे पर चढ़ते थे तब जीमें यह खटका होता था कि इनमें से कितने आदमी लौटकर जा सकेंगे!"

हमारा प्रश्न यही है कि जब तुमको यह खटका था तब उन अनिच्छुक अभागों को मार मार कर मौत के मुँह में ले जाना क्या कहा जा सकता है? तुमको तो गौरव मिलेगा, और उसके साथ ही धन पानेकी भी यथेष्ट संभावना है। तुम उस गौरव और धनकी आशासे जान पर खेलो तो ठीक भी है। लेकिन इन कुली बेचारोंको क्या पाने का लोभ है।

विज्ञान की उन्नति के लिए यूरोप में जीवों के शरीरों की चीरफाड़ (Vivisection) पर अनेक तर्क-वितर्क हुआ करते हैं। इसकी भी आलोचना होती है कि जीते हुए जीव-जन्तुओंको लेकर परीक्षा करनेके समय कष्टनाशक दवाका प्रयोग करना उचित है या नहीं। किन्तु बहादुरी दिखाकर वाहवाही लूटनेके मतलबसे, बहुत दिनोंतक, अनिच्छुक मनुष्योंपर जो असह्य अत्याचार होता है उसका विवरण भ्रमण-वृत्तान्तके ग्रन्थोंमें प्रकाशित होता है; समालोचक लोग उसकी तारीफ तालियाँ पीटते हैं; पुस्तकके संस्करण पर संस्करण होते चले जाते हैं और हजारों पाठिकायें और पाठक इन सब वर्णनोंको विस्मयके साथ