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स्वदेश।

दृष्टि में अत्याचार और अपमान की बातें हैं। मगर हमारी दृष्टि में ये काम गृहलक्ष्मियों (स्त्रियों) के उन्नत अधिकार हैं। इन्हीं के करने में वे पुण्यभागिनी होती हैं; उनको सम्मान और गौरव मिलता है। सुनते हैं कि विलायत में जो स्त्रियाँ इन कामों में लगी रहती हैं वे नीचे दर्जे में गिनी जाकर स्त्री समाज की दृष्टि में हेय हो जाती हैं। इसका कारण यही है कि काम को छोटा समझ कर उसे करने के लिए लाचार होने-पर मनुष्य आप अपनी दृष्टि में छोटा हो जाता है। हमारे यहाँ की देवियाँ जितना ही सेवा के कामों में लगती हैं––तुच्छ कामों को पुण्य-कार्य समझकर करती हैं––विशेषता-रहित स्वामी को देवता मानकर उसकी भक्ति करती हैं उतना ही वे शोभा, सुन्दरता और पवित्रता से चमक उठती हैं, उनके पुण्य तेज से परास्त होकर नीचता या बेइज्जती पास भी नहीं फटकती।

यूरोप कहता है कि सभी मनुष्यों को सब कुछ होने का अधिकार है––ऐसी ही धारणा (समझ) में मनुष्यजाति का गौरव है। लेकिन वास्तव में यह बात नहीं है––सभी को सब कुछ होने का अधिकार नहीं है। इस अत्यन्त सत्य सिद्धान्त को नम्रता के साथ शुरू से ही मान लेना अच्छा है। यदि इसे विनयपूर्वक मान लें तो फिर बेइज्जती की कोई बात नहीं। इस बात को और जरा खुलासा करके कहना ठीक होगा। राम-दास के घर में श्यामदास का कोई अधिकार नहीं है––यह बात बिलकुल निश्चित है। इसी कारण रामदास के घर में हुकूमत न चला सकने से श्यामदास के लिए कोई लज्जा की बात नहीं है। किन्तु अगर श्यामदास के सिर पर ऐसा पागलपन सवार हो कि वह रामदास के घर में हुकूमत चलाना ही अपने लिए उचित समझे और रामदास के घर में हुकूमत चलाने की व्यर्थ चेष्टा करके वारम्बार विडम्बना को प्राप्त होता रहे तो