पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१५४

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तीसरा अध्याय।


का फायदा सब आदासियों के हाथ से बराबर होनेका नहीं । संसार में जितने‌ आदमी हैं उन सबका हिसाब लगाकर देखने से मालूम होगा कि ऐसे भादमी दो ही चार मिलेंगे जिनके तजरुवे की नकल करने से, अर्थात् जिनके अनुभवस्थापित बर्ताव के अनुसार चलने से, प्रचलित व्यवहार में कुछ सुधार होने की सम्भावना होगी । परन्तु इन दो चार आदामियों को कम महत्त्व न देना चाहिए । जिस तरह बिना नमक के भोजन फीका लगता है उसी तरह बिना इन अल्पसंख्यक आदमियों के सांसारिक समाज फीका रहता है । दुनिया में यही आदमी नमक का काम देते हैं । यदि ये न हों तो आदमी की जिंदगी सब तरफ से बन्द कर दिये गये पानी के एक छोटे से गढ़े सी हो जाय । ये लोग नई और अच्छी अच्छी बातों का ही प्रचार नहीं करते; किन्तु जो बातें पहले ही से प्रचलित हैं उनको भी यही सजीव रखते हैं । इन्हींकी बदौलत उनमें जान बनी रहती है । यदि कोई नई बात करने को न हो तो क्या आदमी के लिए अपनी बुद्धि से काम लेने की जरूरत न रहे ? क्या इसको भी कोई अच्छा समझेगा कि जो लोग पुरानी प्रचलित बातों का अनुकरण करते हैं वे उस अनुकरण का कारण भी भूल जांय और आदमियों की तरह नहीं, किन्तु हैवानों की तरह, आंख बन्द करके उसे करते रहें । बिना विचार किये पुरानी लकीर के फकीर होना आदमी को शोभा नहीं देता । यह बात बहुधा देखी जाती है कि जो विश्वास और जो व्यवहार उत्तम हैं वे भी क्षीण होते होते निर्जीव यंत्रों की तरह हो जाते हैं। ऐले विश्वासों और ऐले व्यवहारों का मूल हेतु सजीव, बनाये रखने के लिए यदि प्रवल कल्पना-शक्ति के आदमी, एक के बाद एक, बराबर न पैदा होंगे तो वे जरूर निर्जीव हो जायगे । परम्परा से चली आनेवाली इस तरह की निर्जीव रूढ़ियां-इस तरह की मुर्दा बातें-किसी सजीव विश्वास का थोड़ा सा भी धक्का लगने से दूर हो जायेंगी । वे उसे कभी बरदाश्त न कर संकगी। सुप्रे कोई कारण नहीं देख पड़ता कि वायजण्टाइन की वादशाहत का तरह पुरानी शिक्षा और सभ्यता क्यों न नष्ट हो जाय ? नई और जिन्दा


  • ईसा की तीसरी शताब्दी के लगभग रोम की बादशाहत के दो भाग होगये-एक पूर्वी, दूसरा पश्चिमी । इनमें से पूर्वी भाग का नाम वायजण्टाइन था । १४५३ ईसवी में तुर्क लोगों ने उनका नाश करदिया ।