बातों के धक्के को पुरानी मुर्दा बातें किस तरह बर्दाश्त कर सकती हैं? तेज प्रतिभावाले―विलक्षण बुद्धिवाले―आदमी बहुत कम पैदा होते हैं और वे बहुत कम पैदा होवेंहीगे। यह बहुत सही है। परन्तु जिस खेत में वे पैदा होते हैं उसकी रखवाली खूब खबरदारी से करनी चाहिए, जिसमें इस तरह के जो थोढ़े से आदमी उसमें पैदा होते हैं वे तो होते रहें। प्रतिभा, अर्थात् विलक्षण बुद्धि, को सिर्फ स्वाधीनतारूपी वायुमंडल में ही अच्छी तरह स्वासोच्छास लेने का―आराम से दम मारने का―मौका मिलता है। प्रतिभा शब्द के अर्थ के अनुसार प्रतिभावान् आदमी, और आदमियों की अपेक्षा विलक्षण होते ही हैं। इसीसे ऐसे आदमी अपने बदन को सिकोड़ कर, बिना चोट लगे, उन छोटे छोटे बर्तावरूपी सांचों में से किसी एक सांचे के भीतर अपने को नहीं ढाल सकते, जिनको समाज इसलिये बनाता है कि हर आदमी को अपने अपने बर्ताव का सांचा बनाने की तकलीफ न उठानी पड़े। यदि डर, या और किसी कारण, से किसी सांचे में अपने स्वभाव को ढालने के लिए लाचार होकर वे राजी भी होते हैं, तो दबाव के कारण उनके जिस अङ्ग का पुष्टि औरों की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए वह नहीं होती। अतएव उनकी प्रतिभा से―उनकी विलक्षण बुद्धि से―समाज का जो हित होना चाहिए वह नहीं होता। यदि ऐसे आदमी निर्भय और दृढ़ स्वभाव के हुए और समाज की डाली हुई बेड़ियों को उन्हों ने तोड़ डाला तो उनकी विलक्षणता का नाश करने में कामयाब न होनेवाले लोग फौरन ही उनकी तरफ उँगली उठाकर कहने लगते हैं कि―“ये अजब पागल आदमी हैं; ये कुछ बहक से गये हैं।” उनका यह कहना गोया इस बात की शिकायत करना है कि बेतरह तेजी से बहनेवाले अमेरिका की नियागरा नदी, हालंड के नहरों की तरह अपने दोनों किनारों के भीतर ही भीतर क्यों नहीं धीरे धीरे बहती?
मेरी समझ में प्रतिभा अर्थात् अद्भुत बुद्धि, बहुत बड़े महत्त्व की चीज है। इस बातको मैं दृढ़तापूर्वक कहता हूं―बलपूर्वक करता हूं। मैं इस बात पर भी जोर देता हूं कि विचार और व्यवहार, दोनों, में प्रतिभा को यथेच्छ अपना काम करने देने की बड़ी जरूरत है। उसका जरा भी प्रतिबन्ध करना अच्छा नहीं। मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि जिस सिद्धान्त या जिस नियम का वर्णन मैंने यहां पर किया है उसके प्रतिकूल कोई कुछ न कहेगा। उसे सभी मानेंगे। तिस पर भी मैं जो इस सिद्धान्त पर इतना