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पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१६६

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तीसरा अध्याय।

इनमें अपूर्वकल्पना-शक्ति जरूर ही रही होगी। क्योंकि बड़े बड़े शहरों में रहनेवाले और अनेक प्रकार की विद्याओं और कलाकुशलताओं में प्रवीणता प्राप्त करनेवाले इन देशों के निवासी पाताल से एक दम नहीं निकल आये। इन सब गुणों को उन्होंने खुद ही प्राप्त किया था। इसीसे पुराने जमाने में ये देश, सारी दुनिया में, अत्यन्त प्रबल और अत्यन्त उन्नत थे। परन्तु अब उनकी क्या हालत है? जिस समय उनके पूर्वज बड़े बड़े महलों में रहते और विशाल से भी विशाल मन्दिरों की प्रतिष्ठा करते थे, उस समय जिनके पूर्वज जंगलों में मारे मारे फिरते थे, उन्हींकी वे अब ताबेदारी करते हैं; उन्हींका वे अब आसरा रखते हैं; उन्हींकी वे रिआया बने हैं। यह हुआ, कैसे? यह इस तरह हुआ कि जो लोग आज कल इतने प्रबल और इतने प्रभुताशाली हैं उनके पूर्वज अकेली रूढ़ि के ही दास न थे। सुधार और स्वाधीनता को भी वे कुछ समझते थे। कभी कभी ऐसा होता है कि एक आध देश, कुछ काल तक, बराबर उन्नति करता जाता है और फिर वह एक दम जहां का तहां रह जाता है; अर्थात् उसकी उन्नति वहीं रुक जाती है। यह बात होती कब है? यह तब होती है जब व्यक्ति-विशेषता नहीं रहती; अर्थात् जैसे ही व्यक्ति वैलक्षण्य को लोग भूलते हैं तैसे ही उनकी उन्नति रुक जाती है। यदि योरप के देशों को भी ऐसी ही दशा प्राप्त हो तो वह ठीक उसी तरह की न होगी जिस तरह की पूर्वी देशों को प्राप्त हुई है। उसमें कुछ भेद होगा; क्योंकि रूढ़ि की सत्ता, जिससे योरप के पीड़ित होने का डर है, निश्चल रूप में न होगी। रूढ़ि की सत्ता जैसे पूर्वी देशों में निश्चल रूप से अकण्टक राज्य कर रही है वैसे ही वह योरपके देशों में न कर सकेगी। इसका कारण यह है कि रूढ़ि की प्रबल सत्ता यद्यपि व्यक्ति-विशेषता के प्रतिकूल है तथापि वह अवस्थान्तर करने के प्रतिकूल नहीं। वह एक अवस्था से दूसरी को प्राप्त होनेमें रुकावट नहीं पैदा करती। पर एक बात यह है कि सब आदमियों को एक ही साथ अवस्थान्तर करना चाहिए। हम लोगों ने अपने पूर्वजों की पसन्द की हुई पोशाक पहनना छोड़ दिया; तथापि सब आदमियों को एक ही सी पोशाक पहनना पड़ता है। हां, यदि, साल में दो दफे पोशाक का फैशन—पोशाक का तर्ज—बदला जाय तो कोई हर्ज की बात नहीं समझी जाती। बात यह है कि जब कभी हम कोई अवस्थान्तर करते हैं तक केवल अवस्थान्तर के खयाल से करते हैं; सुभीते या खूबसूरती