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स्वाधीनता।

क्यों न हो गई? योरपवालों में कोई सर्वोत्तम बात नहीं है। क्योंकि सर्वोत्तमता जहां कही होती है कार्य के रूप में होती है, कारण के रूप में नहीं। वह आप ही आप नहीं पैदा होती; प्रयत्न करने से मिलती है। अतएव उनके उन्नतिशील होने का कारण आप ही आप उत्पन्न हुई उत्तमता नहीं है। उसका कारण है उनके स्वभाव और उनकी शिक्षा की विलक्षणता। जितने आदमी हैं, जितने जन-समूह हैं, और जितने देश हैं सब एक दूसरे से अत्यन्त भिन्न हैं। उन्होंने एक दूसरे से भिन्न सैकड़ों नये नये रास्ते निकाले हैं और उन सब से उन्होंने थोड़ा बहुत फायदा भी उठाया है। यद्यपि, हर समय में, अपने निकाले हुए रास्ते से जानेवाले लोग, दूसरों को बिलकुल नहीं देख सकते थे; और यद्यपि हर आदमी यही समझता था कि जो और लोग भी उसीके रास्ते से चलें तो बहुत ही अच्छा हो; तो भी परस्पर एक दूसरे की उन्नति में बाधा डालने के इरादे से किये गये यत्नों में उन लोगों को चिरकाल तक रहनेवाली कामयाबी नहीं हुई; और एक दूसरे के निकाले हुए रास्ते पर चल कर परस्पर फायदा उठाने के लिए सब लोग कुछ समय तक जिन्दा रहे। मेरी राय में सब तरह की वर्द्धमान उन्नति के लिए योरप इसी मार्ग-बहुलता का ऋणी है। अर्थात् नीति और व्यवहार आदि से सम्बन्ध रखनेवाले जुदा जुदा तरीके यदि लोग न निकालते तो उस की कदापि इतनी उन्नति न होती। पर अब ये बातें कम हो चली हैं। नये नये रास्तों का निकलना, नई नई रीतियों का प्रचलित होना, अब बन्द हो चला है। रुचिविचित्रता में तो वह अपना कदम पीछे रख रहा है; पर चीनियों की तरह सब आदमियों को एक ही सांचें में ढालने की तरफ वह अपना कदम खूब आगे बढ़ा रहा है। फ्रांस में डी॰ टाकेह्वेली[१] नाम का एक


  1. फ्रांस में डी॰ टाकेह्वेली का जन्म १८०५ में और मरण १८५९ ईसवी में हुआ। २० वर्ष की उम्र में वह बैरिस्टर हुआ और २१ में न्यायाधीश। एक दफे गवर्नमेण्ट के हुक्म से वह अमेरिका गया। वहां उसने अमेरिका के जेलखानों की व्यवस्था देखी और उस पर एक रिपोर्ट लिखकर गवर्नमेन्ट को दी। इसी लिए वह अमेरिका भेजा गया था। इसके बाद उसने अमेरिका की लोकसत्तात्मक राज्यव्यवस्था पर एक बहुत अच्छी पुस्तक लिखी। १८३९ में वह फ्रांस की प्रतिनिधि-सभा का सभासद हुआ। जब लुई नेपोलियन ने फ्रांस की राज-सत्ता अपने हाथ में ली तब टाकेह्वेली जेल में था। कुछ दिनों बाद यह छूटा और अपनी बाकी उम्र उसने ग्रंथ लिखने में बिताई। "फ्रांस की पुरानी राज्य पद्धति और नई राज्यक्रान्ति" नाम का एक बहुत बड़ा ग्रंथ उसने लिखा हैं। यही उसकी पिछली पुस्तक है।