तक पहुँच कर नहीं रह गई। वह बराबर आगे बढ़ती ही जा रही है; अर्थात् भिन्नता दिनों दिन क्षीण होती जाती है और अनुरूपता दिनों दिन बढ़ती ही जाती है। एक बात और है। वह यह है कि इस समय की राजनीति में जो फेरफार हो रहे हैं वे भी अनुरूपता के बढ़ानेवाले हैं। क्योंकि आज कल की राजनीति का झुकाव ऊंचे दरजे के आदमियों को नीचा और नीचे दरजेवालों को ऊंचा बनाकर परस्पर सदृशता करने ही की तरफ अधिक है। जैसे जैसे शिक्षा की वृद्धि होती जाती है तैसे तैसे आदमियों में सदृशता की भी वृद्धि होती जाती है। भिन्नता का नाश करने में शिक्षा भी खूब मदत दे रही है। क्योंकि शिक्षा का असर सब लोगों पर बराबर पड़ता है और उसके द्वारा सब तरह की बातों और सब तरह के विचारों का भाण्डार भी सब के लिए एकसा खुल जाता है। रेल और धुवांकश आदि, आने जाने के साधनों, में उन्नति होने से भी सदृशता की उन्नति हो रही है। क्योंकि उनके द्वारा दूर दूर देशों के आदमी अधिक आते जाते हैं और आपस में एक दूसरे से अधिक मिलते रहते हैं; यहां तक कि एक देश को छोड़कर दूसरे देशको, वहीं रहने के इरादे से, वे बराबर जा रहे हैं। व्यापार और कारीगरी से भी अनुरूपता की खूब उन्नति हो रही है। क्योंकि सुख—साधन, अर्थात् आराम से रहने, का फायदा सब को बराबर पहुँच रहा है और हर विषय में—चाहे वह जितना बड़ा हो—अपनी अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए चढ़ा ऊपरी करना सबको एकसा सुलभ हो रहा है। इससे क्या हुआ है कि अपनी उन्नति करने की इच्छा अब किसी एक ही वर्ग सम्प्रदाय या जन-समूह का मनोधर्म्म नहीं है; किन्तु वह सबका एकसा मनोधर्म्म हो रहा है। जितने आदमी हैं सबको एकसा कर डालने; सबको एक सांचे में ढालने, सबकी भिन्नता का नाश करदेने, के ये जितने कारण हैं इन सबसे भी अधिक बलवान् कारण, इसमें और दूसरे स्वाधीन देशों में भी, राजकीय बातों में सार्वजनिक मत की प्रबलता की नीव पर खूब दृढ़ता से स्थापित की हुई राजकीय पद्धति आदमियों के सादृश्य को सबसे अधिक बढ़ाती है। आज कल समाज के वे ऊंचे ऊंचे स्थान, जिनके ऊपर निर्भयतापूर्वक खड़े होकर समाज के मतों की लोग अवहेलना कर सकते थे, गिर गिर कर चौरस होते जाते हैं। इस समय इस बात के अच्छी तरह मालूम हो जाने पर कि किसी विषय में समाज की क्या राय है, राजनैतिक पुरुषों के
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