पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१९८

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चौथा अध्याय ।

अच्छा, अब दूसरा उदाहरण लीजिए। यह इस देश के बहुत पास का है। स्पेन में अधिक हिस्सा ऐसे ही लोगों का है जो यह समझते हैं कि रोमन कैथलिक सम्प्रदाय में कहे गये तरीके को छोड़ कर और किसी तरीके से ईश्वर की पूजा करना घोर पाप है। यही नहीं, वे यह भी समझते हैं कि ईश्वर को क्रोध भी आता है और बहुत अधिक क्रोध आता है। इससे स्पेन की हद के भीतर किली और तरह से ईश्वर की आराधना करना कानून के खिलाफ है। दक्षिण में यदि कोई धर्मोपदेशक, अर्थात् पादरी, विवाह कर लेता है तो लोग उसे वेधर्म अथवा धर्मभ्रष्ट ही नहीं समझते; वे उसे कामुक, निर्लज्ज, वीभल्ल और घृणित भी समझते हैं। सच्चे दिल से इस तरह के मनोविकारों को जाहिर करने, और दूसरे सम्प्रदायवालों को भी अपना ही सा बनाने के लिए रोमन कैथलिक लोग जो इतनी खटपट करते हैं उसे देख कर प्राटेस्टण्ट लोगों को क्या मालूम होता है । पर जिन बातों से दूसरों का बिलकुल ही सम्बन्ध नहीं है उनमें दस्तन्दाजी करके यदि लोग एक दूसरे की स्वतंत्रता को छीन लेना था उसमें बाधा डालना, उचित समझेंगे तो जो उदाहरण मैंने यहां पर दिये उनको किल नियम या किस तत्त्व के आधार पर अनुचित, . असंगत या युक्ति-हीन साबित करेंगे ? अथवा जिस बात को लोग, ईश्वर और आदमी दोनों की दृष्टि में, कलङ्क समझते हैं उसे यदि वे रोकने की चेष्टा करें तो किस तरह वे दोपी ठहराये जा सकेंगे ? ये बातें जिन लोगों को 'धर्म-विरुद्ध मालूम होती हैं उन लोगों के पक्ष में अपनी समझके अनुसार इनको रोकने के जितने सबल कारण हैं, उतने सवल कारण और किसी आत्म- सम्बन्धी दुराचार को रोकने के पक्ष में नहीं दिये जा सकते । सामाजिक और धामिक दातों में जो लोग दूसरों को बिना कारण सताते हैं उनकी दलीलें सुनने लायक हैं। वे कहते हैं कि " हम जो कुछ कहते हैं वह सच है; एस लिए दूसरों को सताना हमें मुनासिब है । पर दूसरे तो कुछ कहते हैं वह झूट है; इस लिए हमको सताना उन्हें सुनासिब नहीं"। वेफायदा उपद्द करनेवालों की हन दिलक्षण दलीलों को उनके इस अद्भुत तर्क- शार को-पसन्द करने में जो लोग खुश न हों उनको चाहिए कि जिस नियन प्रयोग को वे अपने लिए महा अन्यायकारक समझते हैं उसी नियम के प्रयोग को दूसरों के लिए उचित और न्यायसंगत कुबूल करने में वे जरा आगा पीटा सोच लें।