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स्वाधीनता ।

पुकार कर उस आदमी को पुल पर पैर रखने से मना करे। ऐसी दशा में उसका काम है कि वह उस आदमी को पकड़ कर पीछे खींच ले। ऐसा करने से उस आदमी की आत्मस्वतंत्रता में जरा भी बाधा नहीं आ सकती। क्योंकि किसी इष्ट या अभिलपित काम के करने ही का नाम स्वतंत्रता है और पुल पर से नदी में गिरना उस आदमी को बिलकुल ही इष्ट नहीं है। परन्तु जिस काम से अनिष्ट होने की सिर्फ सम्भावना रहती है, निश्चय नहीं रहता, उसमें उस अनिष्ट का सामना करना चाहिए या नहीं-इस बात का फैसला सिर्फ वही आदमी कर सकता है जिसका वह काम है। क्योंकि जिस मतलब से वह उस अनिष्ट का सामना करने का विचार करेगा उस मतलब का गौरव या लाघव सिर्फ उसी को अच्छी तरह मालूम रहेगा। अतएव ऐसे विषय में होनेवाले अनिष्ट की उसे सिर्फ सूचना ही दे देना बस है। उस काम को न करने के लिए उस पर जबरदस्ती करना मुनासिब नहीं। परन्तु यदि इस तरह के काम से किसी अल्पवयस्क या ऐसे आदमी का सम्बन्ध हो जिसकी समझ में, सन्निपात इत्यादि किली रोग या और ही किसी कारण से फरक आगया हो या उत्तेजना अथवा घबराहट के कारण जिसकी विचार- शत्ति बिगड़ गई हो तो बात दूसरी है। इस हालत में उसका जरूर प्रति- बंध करना चाहिए । इन नियमों के अनुसार जहर की बिक्री इत्यादि का विचार करने से यह बात ध्यानमें आ सकती है कि कब उसे बन्द करना उचित होगा और कय अनुचित । अर्थात् किस हालत में जहर बेचना स्वतं- त्रता के सिद्धान्तों के अनुकूल होगा और किस हालत में प्रतिकूल । उदाहरण के तौर पर यदि जहर बेचनेवाले इस बात के लिए मजबूर किये जायँ कि वे जहर की शीशियों पर एक कागज का टुकड़ा चिपका कर उस पर यह लिखें कि उनमें जहर भरा हुआ है तो यह बात स्वाधीनता में बाधा डालनेवाली न होगी। क्योंकि मोल लेनेवाला यह कभी न चाहेगा कि वह इस बात को न जाने कि जिस चीज को वह ले रहा है वह जहर है। परन्तु यदि यह शर्त कर दी जाय कि जिसे जहर मोल लेना हो वह हमेशा डाक्टर की सर्टिफि.. देर दाखिल किला करे तो अच्छे कामों के लिए भी उसे जहर मिलना कभी पनी अलग हो जायगा, और खर्च तो उसे हमेशा ही अधिक पड़ेगा। जो लोग किली उपयोगी काम के लिए जहर मोल लेना चाहें उनको उसके. रोक में कोई कठिनता न आनी चाहिए। पर जो लोग किसी तरह का जुर्म