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पांचवां अध्याय ।

जानने लायक होती हैं उनको उसे देशभर में फैलाना भी पड़ता है। इस

वात की जिम्मेदारी उसके सिर रहती है। हर जगह हर दफ्तर का जो अधिकारी होता है उसे स्थानिक कारणों से, किसी किसी बात में, अनुचित आग्रह हो जाता है; अथवा उसकी राय संकुचित होजाती है। पर सब से बड़े दफ्तर के प्रधान अधिकारी का पद और आधिकारियों के पद से ऊंचा होता है। औरों की अपेक्षा बहुत अधिक बातें भी उसे सुनने को मिलती हैं। अतएव वह किसी विषय में अनुचित आग्रह नहीं करता और न उसकी राय ही संकुचित होती है । इससे उसकी सूचनाओं को लाभदायक और मान्य समझ कर नीचे दरजे के सव अधिकारी खुशी से कबूल करते हैं। परन्तु ऐसे मुख्य अधिकारी का अधिकार इतना बड़ा चढ़ा हुआ न होना चाहिए कि उसके बल पर जो कास वह कराना चाहे उसे वह जबरदस्ती करा सके । बलप्रयोग का अधिकार-किसीको लाचार करने का अधिकार- उसे मिलना सुनासिव नहीं। इस विषय में उसको सिर्फ इतना ही अधि- कार होना चाहिए कि म्यूनिसिपालिटी के सम्बन्ध में जितने कायदे-कानून बनाये गये हों उनकी तामील वह और अधिकारियों से करा सके। पर जिन बातों के विषय में कोई कायदे नहीं बनाये गये उन्हें करना या न करना उसे अधिकारियोंही की सर्जी पर छोड़ देना चाहिए। उनके लिए वही जिम्मेदार हैं। जिन लोगों ने यथानियम अधिकारियों को चुना है वे खुद ही ऐसे मामलों की देखभा लकर लेंगे। जो जनसमुदाय, या जो कौन्सिल, कानून बनाती है उसे चाहिए कि वह म्यूनिसिपालिटी से सम्बन्ध रखनेवाले कानून भी बनावे और यदि कोई उन्हें अमल में न लावे, या किसी प्रकार उनको भङ्ग करे, उसे वह सजा भी दे। मुख्य अधिकारी का काम यह देखने का है कि सब कर्मचारी कानून के अनुसार अपना अपना काम करते हैं या नहीं। यदि वह देखे कि कोई कर्मचारी कानून को अमल में नहीं लाता है, या उस के किसी अंश को वह भङ्ग करता है तो अपराध के गौरव-लाधव का विचार करके, उस कर्म- चारी को सजा दिलाने के इरादे से या तो वह मैजिस्ट्रेट से प्रार्थना करे, या जिन लोगों ने उस कर्मचारी को रक्खा हो उनसे, उसे निकाल देने के लिए, वह सिफारिश करे। इस देश में गरीब आदमियों के पालन-पोषण के विषय में एक कानून है। यह कानून मुनासिब तौर पर अमल में लाया जाता है या नहीं-इस यात की देखभाल करने के लिए एक व्यवस्थापक सभा है।