पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२७९

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अपनी उच्छृङ्खलता न दिखावें, यही उनसे सभ्य संसार का कहना है । उन माततायियोंने पुनीत पादरियों की पवित्र पुश्तैनी जायदाद को छीनकर राष्ट्र की संपत्ति वनादी है ! खुदा के खास घरों को खाली कराके वहाँ मदर्से खोल दिये हैं ! सुना जाता है, कि वहाँ ईश्वर का बॉयकाट ज़ोरों पर चल रहा है। धर्मवीर धनियों और रसिक रईसों के खास खुदा का देश-निकाला किया जा रहा है तो फिर धर्मपरायण पवित्र यूरोप और प्रायः समस्त आस्तिक संसार उनके इस धर्म- विध्वंस पर कुपित क्यों न हो? क्षुद्र रूस की यह हिमाकत ! ईश्वर-बहिष्कार !! उसकी इस वेसिर-पैर की नालायकी पर क्यों न बिगड़ उठे सभ्य संसार ! बिगड़ने की बात ही है। खुदा के खिलाफ़ वग़ावत करने चला है वह काफ़िर मुल्क ! जिस स्वनिर्मित ईश्वर की बदौलत इतने भारी-भारी साम्राज्य संसारमें आज टिके हुए हैं, जिसके प्रखर प्रताप से पृथिवीतल परधर्मप्राण पूँजी-पतियों की तूती बोल रही है, जिसकी अतुल अनुकम्पा से अत्याचारी अवनीशों के अनीति-पूर्ण राज्य भी राम-राज्य कहे जाते हैं,उस अमीरपरवर परमेश्वर का देश- निकालो किस धनी धर्मात्मा की आँख में न खटकेगा ? ईश्वर की शपथमात्र से ही जब बड़े-बड़े काम निकाले जा सकते हैं, तब, सोचने की बात है, दौलत की दुनिया में, खुद ईश्वर कितना उपयोगी न सावित हुआ होगा ? धर्म के इस निगूढ़ रहस्य को धर्मशील आस्तिक ही जानते हैं ।

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