आज हमारे हाथ में ईश्वर ही तो एक अमोघ अस्त्र है। दीनों और दलितों को डराने-धमकाने के लिए,
उन्हें नरक का भीषण दृश्य दिखाने के लिए ईश्वर ही तो
एक काम की चीज़ है। अल्लाह की ओट बड़ी ओट है।
उस सर्वशक्तिमान के बहिष्कार से प्रभुओं का प्रलय हो
जायगा,धनियों का ध्वंस हो जायगा । ऐसे संकट के विकट
दिनोंमें अरक्षित अनाथ ईश्वरकी रक्षा अवश्य ही होनी चाहिए।
आस्तिक-समाज इस विपदा में भी ईश्वर का साथ न देगा,
तो फिर कब देगा ? स्वप्न में भी जिनका कभी ईश्वर के
साथ कोई सरोकार नहीं रहा, वे भी आज खुदाई बलवाइयों
से भिड़ने के लिए मैदाने जंग में उतर आये हैं । जव-जव
धर्म और ईश्वर पर आफत के काले वादल मँडराये, तव-तव
मत-मजहवों के मर्द सिपाहियोंने अपनी जान हथेली पर
रख कर बलवाइयों पर कत्ते के हाथ जमाये। 'अन् अल्
हक ' की सदा लगानेवाले उस काफिर मंसूर को काजियों-
ने सूली पर आख़िर चढ़ा ही दिया। उस दिगम्बर सरमद
का भी सिर धर्मवीर औरंगजेब के न्यायो मुल्लाओंने धड़ से
अलग करा दिया। उस ब्रह्मर्षि पर भी वही जुर्म लगाया
गया, जो मंसूर पर लगाया गया था। इन दोनों नास्तिक
संतों की परमपवित्र हत्याने इस्लाम को लाज रख ली,
खुदा की शान में धब्बा न लगने दिया। अभी उस दिन की
बात है, गाय के एक तड़पते बछड़े को ज़हर की सुई लगवा
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