पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२८१

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देनेवाले अहिन्दू गांधी पर धर्मवीरों की अजेय सेनाने एक- दम हमला बोल दिया था। धर्म-युद्ध के रंगरूटों में वे सजन भी भरती होगये थे, जो सुहृद्वर कसाइयों के कर कमलों में गोमाता की पूंछ पकड़ाकर लाखों रुपये प्रतिवर्ष पैदा करते हैं ! कतिपय धर्म-धुरन्धरों ने तो उस गोघातक गांधी की 'महात्मा ' पदवी तक जब्त कर ली थी। फिर भी उस धर्म के वागीने त्रिवेणी-तट पर जाकर अपने पाप- कृत्य का प्रायश्चित्त न किया ! निस्सन्देह वह नास्तिक गांधी मरने पर नरक-द्वार का दर्शन करेगा । खैर, धर्म की रक्षा तो मजहवी महारथियोंने लगे हाथों कर डाली। क्यों न संसार में वे धर्मवीर अक्षय पुण्य के भागी कहे जायॅं  ?

यह सब हुआ, अब यह तो साफ़-साफ़ बतला दे, मेरी आत्मा पर अपना प्रकाश डालनेवाले मेरे अलबेले मालिक, कि क्या. सचमुच ही तेरा कहीं वहिष्कार किया जा रहा है ? मुझे तो यह सब योंही खेलवाड़-सा मालूम देता है । वे, जो हृदय से शपथपूर्वक तेरे साथ अपना सम्बन्ध विच्छेद कर चुके हैं, आज तेरी रक्षा का भार अपने कन्धों पर उठा रहे हैं, यह धर्म का एक खासा मखौल नहीं तो क्या है ? वेचारे रूसने यह बुरा ही क्या किया, जो झूठे ईश्वर का बॉयकाट करने के लिए उसने अपनी आवाज़ बलन्द की ? जिस झूठी स्वार्थ-वासना को हम सव धर्म-दम्भी पवित्र ईश्वर-सत्ता का

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