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पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२९३

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है ? अप्रत्यक्ष रीति से तो ये महज्जन तुझे गद्दी से उतार हो चुके हैं, अब खुल्लमखुल्ला यह शाही ऐलान क्यों नहीं कर देते, कि--

" आज पुराने सड़े-गले समदर्शी ईश्वर के स्थान पर अमीरपरवर परमेश्वर तख्तनशीन किया गया है !"

यह धर्म-घोपणा आजही हो जानी चाहिए । धार्मिक संसार में यह सबसे बड़ी विजय कही जायगी। हाँ, विजेताओं का नाम हो जायगा । नाथ! आज के धार्मिक संसार में तेरे रहने योग्य कहीं एक इंच भर भी तो जगह नहीं है। फिर वही बात याद आ रही है । बहिष्कार तो तेरा किया है चतुर धर्म-व्यवसाइयोंने और नाम लिया जाता है उन वेचारे रूस-वासियों का! वलिहारी ज़माने की इस अनोखी सूझ पर ! वाह ! यह भी एक ख़ासा तमाशा रहा!

अच्छा किया, जो तूने उन माया-मय अड्डों को छोड़ दिया । जहाँ काम ही राम मान लिया गया हो, वहाँ अव तेरा काम ही क्या रहा, मेरे राम ? तेरे पवित्र मठ-मन्दिरों और मसजिदों और चर्चों को ठगों के अधिकार में देखकर हृदय रोने लगता है, विद्रोह की आग भड़क उठती है । तो भी लोग मुझ से पूछते हैं, कि तू देवालयों में देव-दर्शनार्थं क्यों नहीं जाता ? क्या बताऊँ, किस-किस से अपनी ऊल जलूल कहानी कहता फिरु ? संभव है, ये लोग मुझे धर्म-

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