पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३१७

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हैं। वासुदेव के गीता-सन्देश में ही तो विश्व को क्रान्ति- शान्ति का समन्वय, वरदान के रूप में, मिला है।

इस चित्र में भगवान् बुद्धदेव समाज-तिरस्कृता एक वेश्या के हाथ से भिक्षा-ग्रहण कर रहे हैं। धन्य शाक्य मुनि की यह आदर्श पतित-पावनता!

यह मसीह ईसा पतितों को उठा रहा है, कोढ़ियों के घाव धो रहा है। फिर परमपिता का वात्सल्य-भाजन क्यों न हो विश्व-वन्दनीय मरियम-कुमार ?

ऐं! जन-सेवा का यह प्रतिफल ! अपने रक्त से यह वही महात्मा ईसा सूली पर रंग चढ़ाने को खड़ा है। तभी तो उसके बलि -दान का पवित्र 'क्रास ' आत्म-शान्ति का द्योतक कहा जाता है।

ज़रें-ज़रें में अपने यार की सूरत देखनेवाला वह मस्त मंसुर क़त्लगाह में खड़ा प्यारी सूली को बोसे दे रहा है। उसके खून की हर बूंद से 'अन् अल्ह हक़ ' का नकुश बनता जाता है।

और, यह दर्द-दीवानी मीरा अपने प्यारे सजन का चरणोदक समझकर ज़हर का प्याला पी रहो है। इस पगली के हृदय के गीत आज भी हमारे जीवन के प्रेम-प्रान्त में प्रतिध्वनित हो रहे हैं।

यह ! ला-मजहब रसोदा सरमद अपने शरीर को प्रेम-मद-माती तलवार से लिपटाने के पहले प्यारे जल्लाद

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