पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३१८

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से मानों कह रहा है-"आ, आ, प्यारे! तेरे कुर्वान जाऊँ; जिस सूरत में भी तू आवे, मैं तुझे खूब पहचानता हूँ।"

और, यह खादी की लँगोटी लगाये ग़रीबों की गाँठ का परमधन गांधी दलित अछुतोंके बच्चों को अपनी गोद में बिठाये प्यार कर रहा है। पास ही उसका दीन-बन्धु चरखा रखा हुआ है। क्यों न वृद्ध भारत का कायाकल्प हो जाय तपोधन गांधी के मोहन-मंत्र से?

'विश्व-धर्म, के मन्दिर की यह चारु चित्रावली मानव-हृदय की एक भक्षय सम्पत्ति होगी। कर्म-पथ के साधक इस चित्रावली में अपना जीवन-लक्ष्य अंकित देखा, कर कृतार्थ हो जायँगे।

वह मन्दिर सार्वजनिक होगा, सबका होगा। वह भिन्नता में अभिन्नता का दर्शन करायेगा। नकशा एक नया-सा होगा। मंदिर पर शिखर भी होगा, गुम्बद भी होगा और स्टील्प भी होगा। उसपर कलश भी होगा, पंजा भो होगा और क्रास भी होगा। सत्य का सर्वत्र वास है, अतः उपासना के समय पूरव-पच्छिम का कोई झगड़ा न रहेगा। अल्लाह किस तरफ़ नहीं है? राम ही की तो सारी दिशाएँ हैं। मन्दिर के हर कोने में काशी होगी, और हर कोने में क़ावा। वहा के साधक प्यारे पवित्र पत्थरों को चूमेंगे भी और दण्डवत् प्रणाम भी करेंगे। विश्व-मन्दिर का भगवान्

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