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जा रही हैं। कै़दखा़ने के वज्र-ताले खोले और तोड़े जा रहे हैं। मत-मजहबों को अँधेरी और गन्दी कोठरियों में कुछ- कुछ प्रकाश आने लगा है। अब कट्टरता के मारे दम न घुटा करेगा। हमें भी खुले भाशमान के नीचे आजा़दी की हवा मिलेगी। जगत्पिता! जिस दिन हम सब बच्चे तेरी गोद में खूब किलक-किलककर खेलेंगे, उसी दिन हमारी अनेक युगों को असफल साधना सफल होगी।
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