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स्वाधीनता।


मनोविकार जैसे उचित जगह में प्रयोग किये जाते हैं वैसे ही अनुचित जगह में भी प्रयोग किये जा सकते हैं। सच तो यह है कि ऐसा कोई भी सर्व-सम्मत तरीका नहीं निकाला गया है जिससे गवर्नमेंट की दस्तन्दाजी की योग्यता अथवा अयोग्यता की ठीक ठीक जांच की जा सके। अर्थात् हमको एक ऐसा नियम या तरीका, खोज निकालना चाहिए जिसकी सहायतासे हम तत्काल यह निश्चित कर सकें कि किस बात में दस्तन्दाजी करना गवर्नमेन्ट को उचित है और किसमें नहीं। पर, इस समय लोग करते क्या हैं कि वे अपनी रुचि या अरुचि के अनुसार सब बातों की योग्यता अथवा अयोग्यता का निश्चय करते हैं। ऐसा न होना चाहिए। जब कोई फायदे का काम कराने या किसी नुकसान अथवा आपदा से बचाने की जरूरत होती है तब आदमी उसके लिए गवर्नमेण्ट को खुशी से उत्तेजित करते हैं। पर कुछ आदमी ऐसे भी हैं कि वे चाहे जितने सामाजिक दुःख, अनर्थ या आपदायें सहन करें, तथापि लोगोंके फायदे की एक भी नई बातमें गवर्नमेन्टको दस्तन्दाजी नहीं करने देते। मतलब यह है कि काम पड़ने पर आदमी अपनी रुचि के अनुसार, कुछ इधर और कुछ उधर, झुक पड़ते हैं। या जब कोई काम गवर्नमेन्ट से आदमी कराना चाहते हैं तव उसमें अपने हानि-लाभ की मात्रा का विचार करके उस तरफ झुकते हैं जिस तरफ झुकने से उनको अधिक लाभ जान पड़ता है। या ऐसे मौकेपर वे इस बातका विचार करते हैं कि जिस काम को लोग गवर्नमेन्ट से कराना चाहते हैं उसे वह उनकी रुचि के अनुसार करेगी या नहीं। और उस विषय में जैसा विश्वास, अनुकूल और प्रतिकूल उनको हो जाता है उसीके अनुसार वे अपना मत देते हैं। अर्थात् अनुकुल विश्वास होने से अनुकूल और प्रतिकूल होने से वे प्रतिकूल पक्षवालों में मिल जाते हैं। परन्तु इस बात का सिद्धान्त निश्चित करके कि अमुक काम करना गवर्नमेण्ट को उचित है और अमुक करना उचित नहीं, शायद ही कभी कोई अनुकूल या प्रतिकूला पक्ष में शामिल हुआ हो। इस तरह के नियम या सिद्धान्त के अभाव में, मैं समझता है, इस समय, एक पक्षवाले जैसे भूल करते हैं वैसे ही दूसरे पक्षवाले भी करते हैं। अर्थात् जो लोग, किसी विशेष कारण से, गवर्नमेण्ट की दस्तन्दानी को पसन्द करते हैं वे जैसे भूलते हैं वैसे ही, जो उसकी दस्तन्दाजी में दोष निकालते हैं या उसे बुरा समझते हैं वे भी भूलते हैं।