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पहला अध्याय।

करने का बहुत कम मौका मिलता है। धार्मिक और राजकीय बातों से सम्बन्ध रखनेवाली सत्ता पहले एक ही व्यक्ति के हाथ में थी। अब वह बात नहीं है। अब ऐहिक और पारलौकिक बातों की सत्ता जुदा जुदा आदमियों के हाथ में है; इससे लोगों की मनोदेवता के उचित सांचे में डालने का काम, राजकीय अधिकारियों के नहीं, किन्तु औरों के सिपुर्द है। परन्तु सामाजिक और व्यक्ति-विषयक व्यवहारों के सम्बन्ध में जो मत रूढ़ हो गये है, अर्थात् आदमियों के चित्त में जो भिद से गये हैं, उनके विरुद्ध कोई आदमी किसी तरह की काररवाई न करे, इसलिए नैतिक निग्रह का अब भी उपयोग किया जाता है। अर्थात् नीति का आश्रय लेकर उसकी रोकटोक अबतक की जाती है। उपदेश, धिक्कार और धमकी आदि से किसी बात को रोकने का नाम नैतिक निग्रह है। इस प्रकार के नैतिक निग्रह से, इस समय, सामाजिक व्यवहारों में जितना काम लिया जाता है उसकी अपेक्षा व्यक्ति-विषयक व्यवहारों में बहुत अधिक लिया जाता है। मतलब यह है कि नीति से सम्बन्ध रखने वाली जितनी बातें हैं उनमें धर्म्म की झोंक या धर्म्म की मात्रा अधिक रहती है। और धर्म्म की सत्ता आजतक प्युरिटन[१] पन्थवालों के ही हाथ में रही है। इसीसे व्यक्तिविषयक व्यवहार की सभी बातों को सम्बन्ध में कायदे बनाकर उनका निग्रह करने की इन लोगों की बड़ी ही महत्वाकांक्षा थी। अकेले प्यूरिटन-पन्थवालों के विषय मे ही यह बात नहीं कही जा सकती। इस समय के समाज-संशोधकों ने भी इस विषय में बहुत कुछ चलविचल की है। इन लोगों में से यद्यपि बहुतों ने पुराने धार्मिक विचारों का विरोध बड़े जोरोशोर के साथ किया है, तथापि व्यक्तिविशेष के व्यवहारों का प्रतिबन्ध करने के लिए कायदे बनाने में उन्होंने उतनी ही खटपट की है जितनी कि प्युरिटन-पन्थवालों के समान धर्म्माधिकारियों ने की है। ऐसे समाजसंशोधकों में फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक काम्प्टी का पहला नम्बर है। उसने एक पुस्तक लिखी है। उसका नाम


  1. प्युरिटन-पंथ प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय की एक शाखा है। इसके अनुयायी बड़े निग्रहशील होते हैं। उनका आचरण मुनियोंका ऐसा होता है। उनको खेलतमाशे पसन्द नहीं; ऐशो आराम पसन्द नहीं; अच्छा खाना पीना पसन्द नहीं। इंग्लैण्ड में क्रामवेल के समय में इन लोगों का बड़ा माहात्म्य था।