इस बात को सिद्ध करने के लिए कोशिश करना बेफायदा है कि गवर्नमेण्ट के अत्याचार आर अनुचित या भ्रष्ट काररवाइयों से बचने के लिए अखबारों को स्वाधीनता का दिया जाना बहुत जरूरी है। अब वह समय ही नहीं है कि इसके लिए प्रमाण ढूंढना या जरूरत जाहिर करना पड़े। इस बात का अब कोई प्रमाण ही न माँगेगा। आशा तो मुझे ऐसी ही है। जिस देश में प्रजाके हित और सत्ताधारी पुरुषों, अर्थात् हाकिमों, के हित में एकता नहीं है उसमें इसके विरुद्ध प्रमाण देने की जरूरत नहीं है कि हाकिम ही बतलायें कि प्रजा के मत कैसे होने चाहिए। और न इसके ही विरुद्ध प्रमाण देने की जरूरत है कि प्रजा के किन मतों, या उन मतों को पुष्ट करनेके लिए दिये गये किन मतों, या उन मतों को पुष्ट करनेके लिए दिये गये किन प्रमाणों, का योग्य विचार वे सत्ताधारी हाकिम करें और किनका न करें। अर्थात् इस बात के अनौचित्य को सप्रमाण सिद्ध करने की जरूरत नहीं कि गवर्नमेण्ट के सतों के अनुसार ही प्रजा अपने मत कायम करे, या गवर्नमेण्ट ही इस बात का नियम करे कि प्रजा के किन किन मतों, और उनको दृढ़ करने के लिए दी गई किन किन दलीलों, का वा विचार करे और किन किनका न करे। कहने का मतलब यह कि प्रजा को जो मत उचित जान पड़े उसे वह जाहिर करे। कोई भी राय कायम करके उसे जाहिर करने के विपय में गवर्नमेण्ट किसी तरह का दबाव प्रजा पर न डाले किसी नरह का प्रतिबन्ध न करे। आज तक जितने ग्रन्थकार हुए है उन्होंने स्वाधीनतासम्बन्धिनी इस शाखा का इतनी दफे और इतनी उत्तमता से विचार किया
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