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पृष्ठ:हड़ताल.djvu/१८१

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अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल

पसीना और उन के मस्तिष्क की पीड़ा अपने दामों मोल लेती है। क्या मुझ से यह बात छिपी है? क्या मेरे मस्तिष्क का रत्न सात सौ पौंड में नहीं खरीद लिया गया और उस से घर बैठे एक लाख पौंड नफ़ा नहीं हुआ? यह वह चीज़ है जो तुम से अधिक से अधिक लेना, और तुम्हें कम से कम देना चाहती है। यह पूँजी है! यह वह चीज़ है जो तुम से कहती है-"प्यारो, हमें तुम्हारी दशा पर बड़ा दुख है, हम जानते हैं तुम बड़े कष्ट में हो," लेकिन तुम्हारे उद्धार के लिये अपने नफ़े की एक कौड़ी भी नहीं छोड़ती। यह पूँजी है! मुझ से कोई बतलाए उन में से कौन गरीबों की मदद के लिये इंकम टैक्स पर एक पाई भी बढ़ाने पर राज़ी होगा? यह पूँजी है! एक सुफ़ेद चेहरा और पत्थर का दिल रखने वाला देव! तुम ने उसे पछाड़ लिया है। क्या इस अन्त के समय तुम इस नश्वर देह के कष्ट से मैदान छोड़ दोगे? आज सवेरे जब मैं लन्दन के उन महानुभावों से मिलने गया तो मैंने उन के हृदय तक बैठ कर देखा। उन में से एक का नाम स्कैंटल-बरी है-माँस का एक लोंदा जो हमें खाकर परचा है। वह दूसरे हिस्सेदारों की तरह जो बिना हाथ पाँव हिलाए

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