पृष्ठ:हड़ताल.djvu/१८२

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अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल


आनन्द से सालाना नफ़ा लेते चले जाते हैं बैठा हुआ था-एक बड़ा मोटा बैल जो उसी वक्त चौंकता है जब उस के रातिब में बाधा पड़ती है। मैं ने उस की आँखें देखीं और मुझे मालूम हुआ कि उस के दिल में डर समाया हुआ है। अपनी, अपने नफ़े की, अपने मेहनताने की और हिस्सेदारों की शंका उसे मारे डालती थी। एक को छोड़ कर और सब घबड़ाए हुए हैं, उन बालकों की भाँति जो रात को जंगल में भटक गए हों और पत्ती के ज़रा से खड़कने पर चौंक पड़ते हों। मैं तुम से आज्ञा माँगता हूँ।

[वह ज़रा दम लेकर हाथ फैलाता है यहाँ तक कि बिलकुल सन्नाटा छा जाता है]

कि मुझे उन महाशयों से यह कहने का पूरा अख़तियार दे दो "कि आप लोग लन्दन सिधारें, मजूरों को आप से कुछ नहीं कहना है!"

[कुछ भनभनाहट होती है]

मुझे यह अखतियार दो और मैं क़सम खाकर कहता हूँ कि एक सप्ताह में तुम्हारी सब माँगें पूरी हो जायँगी।

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