पृष्ठ:हड़ताल.djvu/१८३

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अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल

इवैन्स, जागो आदि

हाँ, इन को पूरा अख़तियार दो, पूरा अख़तियार!! शाबाश शाबाश !!

रॉबर्ट

यह लड़ाई हम इस छोटी सी चार दिन की ज़िन्दगी के लिये नहीं लड़ रहे हैं।

[भनभनाहट बन्द हो जाती है]

अपने लिये, अपनी इस छोटी सी नश्वर देह के लिये नहीं, उन लोगों के लिये जो हमारे बाद हमेशा आते रहेंगे।

[हार्दिक व्यथा से]

भाइयो, अगर उन का कुछ भी ख़याल है तो उस के सिर पर एक पत्थर और मत लुढ़कावो, आकाश पर और भयंकर अन्धकार मत फैलाओ कि वे सागर की उद्दाम तरंगों में समा जायँ। मैं उन के लिये बड़ी से बड़ी बातें झेलने को तय्यार हूँ, हम सब इस के लिये तैयार हैं। इस में किसे इन्कार हो सकता है।

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