पृष्ठ:हड़ताल.djvu/१८५

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अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल

[समूह कुछ खिसकता है। मैज पटरी के नीचे नीचे आकर मंच के निकट खड़ी हो जाती है और रॉबर्ट की ओर देख कर कुछ कहना चाहती है यकायक संदेहमय सन्नाटा छा जाता है]

रॉबर्ट

बूढ़े महाशय कहते हैं, "प्रकृति के पैरों को चूमो।" मैं कहता हूँ प्रकृति को ठोकर मारो, देखें वह हमारा क्या बिगाड़ सकती है।

[मैज को देखता है। उस की भवें सिकुड़ जाती हैं। वह आँखें हटा लेता है]

मेज

[मंच के पास आ कर धीमी आवाज़ से]

तुम्हारी स्त्री मर रही है।

[रॉबर्ट उस की ओर घूरता है मानो उत्थान के शिखर पर से नीचे गिर पड़ा हो।]

रॉबर्ट

[कुछ बोलने की चेष्टा कर के]

मैं तुम से कहता हूँ-उन्हें जवाब दो-उन्हें जवाब दो-

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