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पृष्ठ:हड़ताल.djvu/२०५

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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल

ऐंथ्वनी

मैं ने सुना तुम रॉबर्ट्स के घर गई थीं।

एनिड

जी हाँ।

ऐंथ्वनी

तुम जानती हो कि इस खाई के पार करने की चेष्टा करना कितना कठिन है।

[एनिड कुरते को छोटी मेज़ पर रख देती है, और उसके सामने ताकती है]

जैसे कोई चलनी को बालू से भरे!

एनिड

ऐसा न कहिए दादा।

ऐंथ्वनी

तुम समझती हो कि अपने दस्तानेदार हाथों से तुम देश की विपत्ति को दूर कर सकती हो।

[वह आगे बढ़ जाता है]

१९६