पृष्ठ:हड़ताल.djvu/२३३

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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल

मुझसे यह न होगा। यह उचित नहीं है। मैं आपका विरोध नहीं करना चाहता-

वेंकलिन

[नम्रता से]

देखिए, प्रधान जी, हम लोग बिलकुल स्वाधीन नहीं हैं। हम सब एक कल के पुर्ज़े हैं। हमारा काम केवल इतना है कि जितना लाभ कम्पनी को हो सके उतना होने दें। अगर आप मुझ पर आक्षेप लगायें कि तुम्हारा कोई सिद्धान्त नहीं है तो मैं कहूँगा कि हम केवल प्रतिनिधि हैं। बुद्धि कहती है कि अगर यह हड़ताल चलती रही तो हमें जितनी हानि होगी वह मजूरी की बचत से न पूरी होगी। वास्तव में, प्रधान जी, जिन अच्छी से अच्छी शर्तों पर हो सके यह झगड़ा बन्द कर देना चाहिए।

ऐंथ्वनी

ऐसा नहीं हो सकता!

[सब के सब सन्नाटे में आ जाते हैं।]

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