पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०७ माल पुत्रा- अाधी छटाक सौंफ, श्राध पाव पानी में भिगो दो, थोड़ी देर के पीछे स्वच्छ कर लो। फिर छान कर एक सेर आटे में श्राध सेर खाँड बताशे या गुड़ का शर्बत छान कर डालो। फिर सब को भली प्रकार मथो,जिससे उनमें फेन उठ श्रावे । फिर कढ़ाई में घी डाल कर आँच दो, जब घी गर्म हो जावे, तब कटोरे से उस घुले हुए आटे को फैलाते हुए डाल, उलट-पुलट कर खूब सेंक लो । फिर पौने या छापे से निचोड़ कर निकालती जायो । चीले भी इसी तरह बनते हैं। जलेबी- सब से प्रथम खमीर बनाना चाहिए, जाड़ों में यह कई दिन में उठता है और गर्मियों में एक दिन में। एक दिन पहले मैदे को मथ कर एक मिट्टी के बर्तन में रख दो, दूसरे दिन खमीर उठ श्रावेगा। अगर जाड़ों के दिन हों और शीघ्र बनाना हो तो गर्म पानी में धूप और भट्टी के पास रखने से शीघ्र उठ पाता है। सौंफ का पानी डालने से भी शीघ्र उठता है । सौंफ का पानी पकाने के लिए सौंफ को पचगुने पानी में श्रौटावे । चाशनी- चाशनी की पहिचान यह है कि इसमें जब चार-पांच तार देग्व पड़ें तब उतार कर रख लो, और जब बनाने बैठो तब खमीर को खूब फेंट लो। एक छोटी सी मलिया के पेंदे में कलम के बराबर मोटा छेद कर लो। घी को कढ़ाई में डाल भट्टी पर चढ़ा दो । जब घी गर्म हो जावे, तब उस मलिया में खमीर को भरो और छेद एक अंगुली से दाब लो,फिर सीधे हाथ में उसको ले,उंगली को हटा,प्रत्येक जलेबी के लिए चार चक्कर दे कर कढ़ाई यो तई में जितना हो सके फेरो, फिर उस छेद को उसी उंगुली से बन्द कर के खमीर हटा लो। जब जलेबी सिक कर ऊपर पा जावे तब बांस की आधी उंगली बराबर मोटी और हाथ भर लम्बी और सीधी लकड़ी से